संक्रांति के शुभ अवसर पर
माँ मुझको स्नान करा दो
गंगा तट पर हम जायेंगे
थोडा दर्शन पा जायेंगे
पहले तो स्नान करेंगे फिर
तिल का लड्डू खायेंगे
असहाय निर्बल लोंगो में
मुझसे खिचड़ी दान करा दो
कल कल सा जो जल बहता है
निर्मल मन मेरा कहता है
जीवन की धरा सा अविरल
हरपल चलता ही रहता है
पावन और पवित्र है संगम
मुझको अमृतपान करा दो
रंग-बिरंगी उड़े पतंगे
मेरे मन में भरे उमंगें
जी करता है मै उड़ जाऊं
नील गगन में इनके संगे
कैसे मै तुमको समझाऊं
मुझे पतंगे, डोर दिला दो
-कृष्णकुमार किशन
बरेली से
सुंदर नवगीत के लिए बधाई आपको किशन जी!
जवाब देंहटाएंसरल, सहजप्रवाह और सुन्दर नवगीत ..
जवाब देंहटाएंसुंदर नवगीत के लिए किशन जी को बधाई
जवाब देंहटाएंरंग-बिरंगी उड़े पतंगे
जवाब देंहटाएंमेरे मन में भरे उमंगें
जी करता है मै उड़ जाऊं
नील गगन में इनके संगे
ये बाल हठ बहुत प्यारा लगा ...बधाई आपको श्री 'किशन' जी