सूरज से भी बढ़े चढ़े हैं
सूरज के घोड़े
रथ के आगे सजे खड़े है
सूरज के घोड़े
लो सूरज के
हाथों से वल्गाएँ छूट गईं
बेलगाम हो गए सभी सीमाएँ टूट गईं
किसको है अब होश कि इन
सातों के मुख मोड़े
इनकी टापों
की दहशत है दसों दिशाओं में
बदहवास ये चलें कि है सनसनी हवाओं में
अजब थरथरी उधर भक्त जन
खड़े हाथ जोड़े
जाने क्या
रौंदे क्या कुचले इनकी मनमानी
लगता है अब तो सिर तक आ जाएगा पानी
आनेवाला कल शायद इनके
तिलिस्म तोड़े
-सत्यनारायण
पटना से
क्या खूब गीत है यह भाई सत्यनारायण जी का! सच में अद्भुत है इस नवगीत की कहन| साधुवाद 'अभिव्यक्ति-अनुभूति' परिवार को| सत्यनारायण जी की नवगीत पाठशाला में उपस्थिति अपने-आप में एक उपलब्धि है| यह श्रेष्ठ नवगीत सभी नवगीत के अभ्यासियों के लिए एक प्रेरक उदाहरण एवं कसौटी है|
जवाब देंहटाएंइस श्रेष्ठ नवगीत के लिए सत्यनारायण जी को साधुवाद
जवाब देंहटाएंजाने क्या,रौंदे क्या कुचले इनकी मनमानी
जवाब देंहटाएंलगता है अब तो सिर तक आ जाएगा पानी
आनेवाला कल, शायद इनके तिलिस्म तोड़े
बहुत सुन्दर व्यंग, सत्यनारायण जी को बहुत बहुत बधाई,
धन्यवाद
विमल कुमार हेड़ा।
बहुत अच्छा लिखा है :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
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