तारों सा
जीवन पाया है
सुबह हुई और बीत गए
जैसे झरते
झरने कल कल
रूप विरचते पल पल प्रतिपल
ऊँचाई बस रास न आई
सुंदरता
गिरकर ही पाई
पावन करते देवों के सर
झर कर भी वो जीत गए
प्रणय
निवेदन नभ का जैसे
धरती के होठों पर बिखरे
मोती ओस कणों के पहने
बोझिल पलकें
जागें निखरें
प्राजक्ता के फूल गा रहे
गाये जो ना गीत गए
सुबह के
आँचल में सिंदूरी
श्वेत वसन काया महकी सी
रजनी अपना रूप बदल कर
प्रेमगली
फिरती बहकी सी
गए नहीं मौसम बिरहा के
वर्षा, गर्मी, शीत गए
-परमेश्वर फुंकवाल
लखनऊ
जीवन पाया है
सुबह हुई और बीत गए
जैसे झरते
झरने कल कल
रूप विरचते पल पल प्रतिपल
ऊँचाई बस रास न आई
सुंदरता
गिरकर ही पाई
पावन करते देवों के सर
झर कर भी वो जीत गए
प्रणय
निवेदन नभ का जैसे
धरती के होठों पर बिखरे
मोती ओस कणों के पहने
बोझिल पलकें
जागें निखरें
प्राजक्ता के फूल गा रहे
गाये जो ना गीत गए
सुबह के
आँचल में सिंदूरी
श्वेत वसन काया महकी सी
रजनी अपना रूप बदल कर
प्रेमगली
फिरती बहकी सी
गए नहीं मौसम बिरहा के
वर्षा, गर्मी, शीत गए
-परमेश्वर फुंकवाल
लखनऊ
ऊँचाई बस रास न आई
जवाब देंहटाएंसुंदरता
गिरकर ही पाई
पावन करते देवों के सर
झर कर भी वो जीत गए
बहुत प्यारा नवगीत है। बधाई आपको परमेश्वर जी
आ कल्पना जी, पंक्तियों को उद्धृत कर उत्साह बढ़ाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
हटाएंधन्यवाद आ कल्पना जी, उत्साहवर्धन के लिए.
हटाएंबहुत सुन्दर पंक्तियां ...
जवाब देंहटाएंप्रणय
निवेदन नभ का जैसे
धरती के होठोँ पर बिखरे
बोझिल पलकें
जागे निखरेँ
प्राजक्ता के फूल गा रहे
गाए जो न गीत गए ।
धन्यवाद वैद्य जी.
हटाएंबहुत सुन्दर नवगीत है।
जवाब देंहटाएंआ शारदा जी आपका शुक्रिया.
हटाएंवधाई
जवाब देंहटाएंआ जगदीश व्योम जी, आपका धन्यवाद.
हटाएंप्रणय
जवाब देंहटाएंनिवेदन नभ का जैसे
धरती के होठों पर बिखरे
मोती ओस कणों के पहने
बोझिल पलके
सुन्दर गीत .....हरसिंगार का अलग ही रूप .....आपको बधाई परमेश्वर फुन्क्वाल जी
बहुत बहुत धन्यवाद संध्या जी, गीत की भावना को रेखांकित कर अपनी प्रतिक्रिया के लिए.
हटाएंपरमेश्वर जी! सुंदरतम. क़लम चूमने का जी चाहता है. बधाई. - अनिल वर्मा, लखनऊ.
जवाब देंहटाएंआ अनिल जी, आपका कृतज्ञ हूँ इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए.
हटाएंपरमेश्वर जी की कलम ने जादू कर दिया है। पूरा नवगीत बहुत सुंदर है। बधाई
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी इतनी सहृदय प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन करने हेतु आपका धन्यवाद.
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति का नवगीत लगा .
जवाब देंहटाएंतारों सा में उपमा अलंकार है
जैसे झरते
झरने कल कल .....में उदाहरण अलंकार
धरती के होठों पर बिखरे
मोती ओस कणों के पहने
बोझिल पलकें ......में स्वरमैत्री का सौंदर्य आ गया है .
पावन करते देवों के सर
झर कर भी वो जीत गए .... में परहित का स्वर गूंजित हो रहा है .
बधाई
मंजु गुप्ता
वाशी , नवी मुम्बई .
आ मंजू जी, आपके सुन्दर विश्लेषण के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
हटाएंपरमेश्वर जी प्राजक्ता का अर्थ स्पष्ट करें.? मुझे लगता है अभी इस गीत पर और काम करने की जरूरत है।
जवाब देंहटाएंआ भारतेंदु जी, नमस्कार. आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार. मैंने प्राजक्ता क प्रयोग हरसिंगार के पर्यायवाची के रूप में किया है. मैं अभी गीत लिखना सीख रहा हूँ और आपके अमूल्य मार्गदर्शन के लिए आपका आभारी रहूँगा.
जवाब देंहटाएंहरसिंगार का नाम लिये बिना शब्द-शब्द पंक्ति-पंक्ति हरसिंगार को चित्रित करती सी है. शैल्पिक वैशिष्ट्य संपन्न नवगीत हेतु बधाई.
जवाब देंहटाएंआ आचार्य संजीव वर्मा जी, आपकी प्रतिक्रिया से बहुत उत्साह व बल मिला है. आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
हटाएंजैसे झरते
जवाब देंहटाएंझरने कल कल
रूप विरचते पल पल प्रतिपल
ऊँचाई बस रास न आई
सुंदरता
गिरकर ही पाई
पावन करते देवों के सर
झर कर भी वो जीत गए
परमेश्वर जी,
सुन्दर नवगीत | मैंने भी "ऊंचाई बस रास न आई / झर के भी वो जीत गए " हर सिंगार पुष्पों की इस विशेषता की कल्पना की थी किन्तु शब्दों में बाँध नहीं पाई | आपने मेरे मन के भावों को बहुत सुंदरता से कह दिया | बधाई और शुभ कामनाएं |
आ शशी पाधा जी, आपकी प्रतिक्रिया से बहुत उर्जा मिली है. आपका ह्रदय से धन्यवाद.
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