रात उनींदी पलकों में
देखे थे खिलते हरसिंगार
सपनों में मिलने आई माँ
भोर किरण ने आकर चुपके
ऐसी छुअन लगाई अंग
पोर पोर सिहराए–काँपे
पात–पात सुनहरी रंग
झुकी–झरी थी
कोमल डार
चुनकर कलियाँ लाई माँ
घर अँगना फिर हुआ सुवासित
तुलसी –चौरा धूप धुला
ठाकुर द्वारे चन्दन महके
देहरी का पट खुला–खुला
आशीषों के
शीतल झोंके
आँचल बाँध के लाई माँ
गले मिली परदेसन बिटिया
नेह की बदरी बरस गई
बाँध तोड़ नयनों की नदिया
रेत किनारे सरस गई
भरी-भरी
अँखियों में फिर से
मूरत बनी समाई माँ
शशि पाधा
यू.एस.ए.
देखे थे खिलते हरसिंगार
सपनों में मिलने आई माँ
भोर किरण ने आकर चुपके
ऐसी छुअन लगाई अंग
पोर पोर सिहराए–काँपे
पात–पात सुनहरी रंग
झुकी–झरी थी
कोमल डार
चुनकर कलियाँ लाई माँ
घर अँगना फिर हुआ सुवासित
तुलसी –चौरा धूप धुला
ठाकुर द्वारे चन्दन महके
देहरी का पट खुला–खुला
आशीषों के
शीतल झोंके
आँचल बाँध के लाई माँ
गले मिली परदेसन बिटिया
नेह की बदरी बरस गई
बाँध तोड़ नयनों की नदिया
रेत किनारे सरस गई
भरी-भरी
अँखियों में फिर से
मूरत बनी समाई माँ
शशि पाधा
यू.एस.ए.
सरस सुंदर नवगीत ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुपमा जी |
हटाएंसादर,
शशि
बहुत अच्छा नवगीत है शशि पाधा जी का, बिल्कुल हरसिंगार जैसी सघन मनमोहक सुगंध जैसा, कथ्य और शिल्प के स्तर पर भी लगभग कसावट युक्त है। नवगीत के इस चरण में "पात-पात सुनहरी रंग" में एक मात्रा कम प्रतीत हो रही है जिससे लय में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। शशि जी एक बार विचार कर लें और यदि उचित लगे तो इसे ठीक कर लीजिएगा।
जवाब देंहटाएं" भोर किरण ने आकर चुपके
ऐसी छुअन लगाई अंग
पोर पोर सिहराए–काँपे
पात–पात सुनहरी रंग
झुकी–झरी थी
कोमल डार
चुनकर कलियाँ लाई माँ "
बहुत बहुत सुन्दर गीत .....शशि पाधा जी माँ की ममता से महकता हरसिंगार छू गया ...शब्दों मे भी खनक है ...आदरणीय व्योम जी का सुझाव महत्वपूर्ण है ...आपको बधाई
जवाब देंहटाएंमधुर मधुर सरस नवगीत।
जवाब देंहटाएंआदरणीय व्योम जी,
जवाब देंहटाएंमेरे इस नवगीत पर आपने जिन प्रेरणात्मक शब्दों में अपने विचार दिए , उसके लिए मैं आभारी हूँ | अगर ऐसे ही रचनात्मक त्रुटियों से कोई अवगत कराता रहे तो लेखन में गति और निखार आता है | मैंने बहुत सोच के बाद यह पंक्तियाँ जोड़ीं हैं ---
"पोर -पोर काँपे -सिहराए
श्वेत -सुनहला बिखरा रंग "
आशा है अब ठीक होगा | भविष्य में भी मार्गदर्शन करते रहें | आभार आपका |
शशि पाधा
शशि पाधा
शशि जी अब यह बहुत अच्छा हो गया है, एकदम लय में..... आपने सुझाव को सम्मान दिया, आभार
हटाएंशशि जी नवगीत के लय को पकड़ना आप बहुत अच्छी तरह से जानती है
जवाब देंहटाएंमाँ जीवन है तो वो सदा याद आएँगी ही .आपने वो भाव व्यक्त किये हैं वो मन को छू के गुजर रहे हैं
बहुत बहुत बधाई
रचना
बहुत ही सुन्दर गीत है | लयात्मक भी |
जवाब देंहटाएंबधाई |
अवनीश तिवारी
मुम्बई
बहुत सुन्दर नवगीत ।
जवाब देंहटाएंआशीषोँ के शीतल झोँके
आँचल बांध के लाई माँ ।
मधुर नवगीत में माँ का रिश्ता जीवंत हो गया है .
जवाब देंहटाएंप्रेम की अलौकिकता , व्यापकता ओर माँ की महिमा व्यक्त होती है .
गीत प्रवाहपूर्ण और भाषा सहज है .
भाषा में चित्रात्मकता - गत्यात्मकता का गुण विद्यमान है .
पोर पोर ,पात–पात झुकी–झरी में अनुप्रास अलंकार के प्रयोग से भाषा सौंदर्य में वृद्धि हो गई है .
मंजु गुप्ता
वाशी , नवी मुंबई
भारत .
बहुत खूबसूरत नवगीत है ।
जवाब देंहटाएंआशीषोँ के
शीतल झोँके
आँचल बांध के लाई माँ
भोर किरण ने आकर चुपके
जवाब देंहटाएंऐसी छुअन लगाई अंग
पोर पोर सिहराए–काँपे
पात–पात सुनहरी रंग
झुकी–झरी थी
कोमल डार
चुनकर कलियाँ लाई माँ
प्रकृति का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है सुंदर शब्दों में महकता गीत शशिजी ....
सरस सुंदर नवगीत
जवाब देंहटाएंघर अँगना फिर हुआ सुवासित तुलसी –चौरा धूप धुला
जवाब देंहटाएंठाकुर द्वारे चन्दन महके देहरी का पट खुला–खुला
आशीषों के शीतल झोंके आँचल बाँध के लाई माँ
अति सुन्दर भावपूर्ण रचना शशि जी को बहुत बहुत बधाई,
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
शशि जी ,
जवाब देंहटाएंनव गीत की बारिकियों की मुझे जानकारी नहीं किन्तु आपके गीत मुझे अच्छे लगते हैं। व्योम जी के कहे अनुसार जब आपने पंक्ति बदली - श्वेत- सुनहरा बिखरा रंग किया तो हरसिंगार के फ़ूल और जीवंत हो उठे।
बधाई!
इला
इस सुंदर नवगीत के लिए बहुत बहुत बधाई शशि पाधा जी को
जवाब देंहटाएंशशि जी!
जवाब देंहटाएंहरसिंगार को पीढ़ियों के बीच सन्देश दूत बनाकर आपने कलिदेश के मेघदूत की परंपरा को पुनर्जीवित किया. साधुवाद.
आ शशी जी, आपकी लेखनी जादुई है. इसमें नवीनता का समावेश है तो अतीत से जुडी हजारों संभावनाएं भी. बहुत अच्छा लगा आपका यह गीत. बधाई.
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