22 मार्च 2012

३. हरसिंगार फूल से झरें

सिंदूरी सपने
पल-छिन
हरसिंगार फूल से झरें

झाँक गयी वातायन से
मंद-मंद बहती पुरवा
चुपके-चुपके जाने कब
खोल गयी पृष्ठ अनछुआ
बेटी की ओर ताकती
अम्मा का माँगना दुआ

होनी-अनहोनी
संभ्रम
अंतस में हूक सी भरें


जाड़े की बरखा में भी
छप्पर का टप-टप संगीत
श्रमिकों के चूल्हों पर ही
बढ़ती महँगाई की प्रीत
सड़कों से पगडंडी तक
गुमसुम हैं, रोटी के गीत
जीवन भर
आपाधापी
झरबेरी बेर सी फरें

- अनिल वर्मा
लखनऊ

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति ।

    नवसंवत्सर की शुभकामनायें ।।

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  2. चुपके-चुपके जाने कब
    खोल गयी पृष्ठ अनछुआ
    बेटी की ओर ताकती
    अम्मा का माँगना दुआ
    बहुत सुन्दर भाव जैसे किसी आम घर से लिए गए चित्र का वर्णन ...बधाई श्री अनिल वर्मा जी

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  3. नीरज जी के गीत "स्वप्न झरे फूल से" की याद आ गई। अंतिम बंद आम जन के दुख दर्द को पूरी सहजता और सफलता से वर्णित करने के कारण विशेष लगा। बधाई अनिल जी

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  4. सिंदूरी सपने
    पल-छिन
    हरसिंगार फूल से झरें

    झाँक गयी वातायन से
    मंद-मंद बहती पुरवा
    चुपके-चुपके जाने कब
    खोल गयी पृष्ठ अनछुआ
    बेटी की ओर ताकती
    अम्मा का माँगना दुआ
    अति सुंदर प्रस्तुति
    बधाई
    अनिल वर्माजी

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  5. अम्मा का बेटी के लिए दुआ मांगना और फिर निर्धन की असहाय मन:स्थिति का चित्रण बहुत ही प्रभावी लगे | धन्यवाद अनिल जी
    शशि पाधा

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  6. झाँक गयी वातायन से
    मंद-मंद बहती पुरवा
    चुपके-चुपके जाने कब
    खोल गयी पृष्ठ अनछुआ
    बेटी की ओर ताकती
    अम्मा का माँगना दुआ
    अति सुंदर
    rachana

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  7. सिंदूरी सपने
    पल-छिन
    हरसिंगार फूल से झरें

    सामाजिक सचाइयों को मुखर करता सशक्त नवगीत.

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