फिर फिर
जेठ तपेगा आँगन,
हरियल पेड लगाये रखना,
विश्वासों के हरसिंगार की
शीतल छाँव
बचाये रखना।
हर यात्रा
खो गयी तपन में,
सड़कें छायाहीन हो गयीं,
बस्ती-बस्ती
लू से झुलसी,
गलियाँ सब गमगीन हो गईं।
थका बटोही लौट न जाये,
सुधि की जुही
खिलाये रखना।
मुरझाई
रिश्तों की टहनी
यूँ संशय की उमस बढ़ी है,
भूल गये
पंछी उड़ना भी
यूँ राहों में तपन बढ़ी है।
घन का मौसम बीत न जाये,
वन्दनवार
सजाये रखना।
गुलमोहर
की छाया में भी
गर्म हवा की छुरियाँ चलतीं,
तुलसीचौरा
की मनुहारें
अब कोई अरदास न सुनतीं।
प्यासे सपने लौट न जायें,
दृग का दीप
जलाये रखना।
- राधेश्याम बंधु
जेठ तपेगा आँगन,
हरियल पेड लगाये रखना,
विश्वासों के हरसिंगार की
शीतल छाँव
बचाये रखना।
हर यात्रा
खो गयी तपन में,
सड़कें छायाहीन हो गयीं,
बस्ती-बस्ती
लू से झुलसी,
गलियाँ सब गमगीन हो गईं।
थका बटोही लौट न जाये,
सुधि की जुही
खिलाये रखना।
मुरझाई
रिश्तों की टहनी
यूँ संशय की उमस बढ़ी है,
भूल गये
पंछी उड़ना भी
यूँ राहों में तपन बढ़ी है।
घन का मौसम बीत न जाये,
वन्दनवार
सजाये रखना।
गुलमोहर
की छाया में भी
गर्म हवा की छुरियाँ चलतीं,
तुलसीचौरा
की मनुहारें
अब कोई अरदास न सुनतीं।
प्यासे सपने लौट न जायें,
दृग का दीप
जलाये रखना।
- राधेश्याम बंधु
फिर फिर
जवाब देंहटाएंजेठ तपेगा आँगन,
हरियल पेड लगाये रखना,
विश्वासों के हरसिंगार की
शीतल छाँव
बचाये रखना।
...............bahut sunder navgeet . hardik badhai
खूबसूरत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत ..
जवाब देंहटाएंबधाई राधेश्याम जी..
फिर फिर
जवाब देंहटाएंजेठ तपेगा आँगन,
हरियल पेड लगाये रखना,
मन भावन गीत ....
मुरझाई
रिश्तों की टहनी
यूँ संशय की उमस बढ़ी है,
भूल गये
पंछी उड़ना भी
यूँ राहों में तपन बढ़ी है।
घन का मौसम बीत न जाये,
वन्दनवार
सजाये रखना।
बहुत सुन्दर .......भावनाओं को शब्दों मे समेटना ...अवर्णनीय ..बधाई आपको राधेश्याम जी
chav bachai rakhna.. sundar geet hai
जवाब देंहटाएंराधेश्याम बंधु जी नवगीत के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनका ये नवगीत पहले भी पढ़ चुका हूँ। इसे यहाँ दुबारा पढ़वाने के लिए पूर्णिमा जी को बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंडा. रमा द्विवेदी ,हैदराबाद
जवाब देंहटाएंराधेश्याम बंधू जी, नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर हैं ...उन्हें यहाँ पर पढ़ना आनंदित कर गया ....बहुत-बहुत-बधाई व शुभकामनाएँ
गुलमोहर की छाया में भी गर्म हवा की छुरियाँ चलतीं,
जवाब देंहटाएंतुलसीचौरा की मनुहारें अब कोई अरदास न सुनतीं।
प्यासे सपने लौट न जायें,दृग का दीप जलाये रखना।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ रामेश्वर जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेड़ा।
क्षमा करें पहले वाली टिप्पणी में राधेश्याम जी की जगह रामेश्वरजी टाइप हो गया कृपया उसे इस प्रकार पढे़
जवाब देंहटाएंराधेश्यामजी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेड़ा।
फिर फिर
जवाब देंहटाएंजेठ तपेगा आँगन,
हरियल पेड लगाये रखना,
विश्वासों के हरसिंगार की
शीतल छाँव
बचाये रखना।
मुरझाई
रिश्तों की टहनी
यूँ संशय की उमस बढ़ी है,
भूल गये
पंछी उड़ना भी
यूँ राहों में तपन बढ़ी है।
घन का मौसम बीत न जाये,
वन्दनवार
सजाये रखना।
आदरणीय राधेश्याम बंधुजी
सादर अभिवादन
ऐसा कौन है जो इस गीत के नैसर्गिक प्रवाह में समाहित हुए बगैर रह जाए आरंभ से अंत तक सहज प्रवाहमान इस उम्दा रचना के लिए बधाई के हरेक शब्द बौने प्रतीत हो रहे हैं
"फिर फिर
जवाब देंहटाएंजेठ तपेगा आँगन,
हरियल पेड लगाये रखना,
विश्वासों के हरसिंगार की
शीतल छाँव
बचाये रखना"
मन मुग्ध हो गया ऐसा प्रभावशाली गीत पढ़ कर | धन्यवाद राधेश्याम जी |
शशि पाधा
गुलमोहर
जवाब देंहटाएंकी छाया में भी
गर्म हवा की छुरियाँ चलतीं,
तुलसीचौरा
की मनुहारें
अब कोई अरदास न सुनतीं।
प्यासे सपने लौट न जायें,
दृग का दीप
जलाये रखना।
भावों के प्रवाह से भर नवगीत
बधाई
रचना
आज के दूषित समाज को सार्थक सन्देश देता हुआ नवगीत मन को घ्हू गया. साधुवाद.
जवाब देंहटाएंविश्वासों के हरसिंगार की
शीतल छाँव
बचाये रखना।