चलो यार
एक भरम टूट गया
मुट्ठी से हरसिंगार छूट गया
पीतल के छल्ले पर
प्यार की निशानी
उसकी नादानी
ठगी गयी फिर शकुंतला
कोई दुष्यंत उसे लूट गया
आँखों की मछली ने
जाल कल बुने थे
इन्द्रधनु चुने थे
पानी मर गया धूप का
स्वर्णमुखी मंगलघट फूट गया
-डॉ. भारतेन्दु मिश्र
नई दिल्ली
भारतेन्दु जी का ये नवगीत पाठशाला के लिए एक आदर्श नवगीत की तरह है। मुखड़े से अंतरे तक हर पंक्ति में सिद्धहस्त नवगीतकार की छाप स्पष्ट दिखती है। बहुत बहुत बधाई भारतेन्दु जी को
जवाब देंहटाएंडा० भारतेंदु मिश्र जी की रचना बहुत अच्छी लगी .कम शब्दों में कथ्य प्रकट करना वास्तव में श्रेष्ठ कलात्मकता का परिचायक है .स्वर्णिम घट सागर समाए हुए है .बहुत कुछ सीखने को मिला है .
जवाब देंहटाएंआँखों की मछली ने
जवाब देंहटाएंजाल कल बुने थे
इन्द्रधनु चुने थे
पानी मर गया धूप का
स्वर्णमुखी मंगलघट फूट गया
बहुत सुन्दर गहरे भावों को प्रभावी शब्दों से सजाया है ...भारतेंदु मिश्र जी को बधाई
पीतल के छल्ले पर
जवाब देंहटाएंप्यार की निशानी
उसकी नादानी
ठगी गयी फिर शकुंतला
कोई दुष्यंत उसे लूट गया
एक भरम टूट गया
...बहुत खूब भारतेंदु जी. रचना ने स्तब्ध कर दिया. बधाई.
'पानी मर गया धूप का' और उसके बिना मछली क जीवन क्षरण, बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं. लघुता इस गीत क गहना है. बधाई भारतेंदु जी को.
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो पूर्णिमा जी के प्रति आभार कि उन्होने मेरे इस गीत को चौपाल मे रखा। साथ ही धर्मेन्द्र जी,ज्योतिर्मयी जी और सन्ध्या सिंह जी प्रशंसापरक विचारो के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंचलो यार
जवाब देंहटाएंएक भरम टूट गया.
उक्त नवगीत अपने कथ्यगत एवं भावगत वैशिष्ट्य के साथ शिल्पगत वैशिष्ट्य में बेजोड़ है.निश्चित रूप से अकेला ही पाठशाला की तरह.
आदरणीय भारतेंदु जी,
जवाब देंहटाएंइतना सुन्दर नवगीत , इसके विषय में कुछ भी लिखें तो कम है |
ऐसे गीत कुछ नया लिखने को प्रेरित करते हैं | बहुत - बहुत बधाई |
शशि पाधा
एक अनुपम नवगीत के लिए धन्यवाद | ऐसी सुन्दर रचनाओं की टिप्पणी के लिए शब्द भी कम पड़ जाते हैं | आभार आपका आदरणीय भारतेंदु जी |
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
पीतल के छल्ले पर
जवाब देंहटाएंप्यार की निशानी
उसकी नादानी
ठगी गयी फिर शकुंतला
कोई दुष्यंत उसे लूट गया
सुन्दर नवगीत सम्पूर्ण है ऐसे नवगीत पर मुझ जैसे सीखने वाले क्या लिखेंगे
सादर
रचना
आँखों की मछली ने
जवाब देंहटाएंजाल कल बुने थे
इन्द्रधनु चुने थे
पानी मर गया धूप का
स्वर्णमुखी मंगलघट फूट गया
अद्भुत लगीं ये पंक्तियाँ, भारतेन्दु भाई| साधुवाद !
चलो यार
जवाब देंहटाएंएक भरम टूट गया
मुट्ठी से हरसिंगार छूट गया
वाह... वाह... गागर में सागर... गांवों की 'कम लिखे को अधिक समझना' से पत्र समापन की प्रथा को जीवित करता सशक्त नवगीत. हार्दिक बधाई.