तन उपवन
मन हरसिंगार
सरगम छेड़े पल-छिन
जलतरंग बाँह में
ऋतु ला बिछाए सब
रंग इसी छाँह में
करवट लिए मचला रहे
सिसके हँसे पीड़ा सहे
इस बाग़-वन
उस झील पार
हरसिंगार !
जुगनुओं की ज्योति पर
परीकथा लिखे
चरणामृत प्यास की
मरीचिका चखे
दौड़े थमे सँभले कभी
बिगड़े बने सँवरे कभी
तोड़े बुने
सपनों के हार
हरसिंगार !
-अश्विनी कुमार विष्णु
अकोला
मन हरसिंगार
सरगम छेड़े पल-छिन
जलतरंग बाँह में
ऋतु ला बिछाए सब
रंग इसी छाँह में
करवट लिए मचला रहे
सिसके हँसे पीड़ा सहे
इस बाग़-वन
उस झील पार
हरसिंगार !
जुगनुओं की ज्योति पर
परीकथा लिखे
चरणामृत प्यास की
मरीचिका चखे
दौड़े थमे सँभले कभी
बिगड़े बने सँवरे कभी
तोड़े बुने
सपनों के हार
हरसिंगार !
-अश्विनी कुमार विष्णु
अकोला
जुगनुओं की ज्योति पर परीकथा लिखे
जवाब देंहटाएंचरणामृत प्यास की मरीचिका चखे
दौड़े थमे सँभले कभी बिगड़े बने सँवरे कभी
तोड़े बुने सपनों के हार हरसिंगार !
अति सुन्दर, सुन्दर गीत के लिये अश्विनी कुमार जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेड़ा।
तन उपवन
जवाब देंहटाएंमन हरसिंगार
बहुत ही सूक्ष्म कल्पना को मोहक विस्तार दे कर गढ़ी रचना बहुत ही सुंदर. बधाई विष्णु जी.
पूरा नवगीत बहुत सुंदर है। अश्विनी जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंजुगनुओं की ज्योति पर
जवाब देंहटाएंपरीकथा लिखे
चरणामृत प्यास की
मरीचिका चखे
बहुत सुन्दर गीत .....अश्विनी जी.... हमेशा की तरह
दौड़े थमे सँभले कभी
जवाब देंहटाएंबिगड़े बने सँवरे कभी
तोड़े बुने
सपनों के हार
हरसिंगार
बहुत सुन्दर शब्द संयोजन | सुन्दर नवगीत के लिए धन्यवाद
शशि पाधा
सरगम छेड़े पल-छिन
जवाब देंहटाएंजलतरंग बाँह में
ऋतु ला बिछाए सब
रंग इसी छाँह में
करवट लिए मचला रहे
सिसके हँसे पीड़ा सहे
इस बाग़-वन
उस झील पार
हरसिंगार !
सुन्दर नवगीत
दौड़े थमे सँभले कभी
जवाब देंहटाएंबिगड़े बने सँवरे कभी
तोड़े बुने
सपनों के हार
हरसिंगार !
क्या बात है? हरसिंगार को स्वप्न हार से जोड़ता मनहर गीत.