वेला सकाल की सोनई भई,
दूर खर औखर, जुत गए खेत
सुर और लय में बयार बही
नवराते गुनगुनाए तितलियों समेत
सुधि आई दशमी, जीत दीप-हार की,
डार ....
काँस फाँस से ये नोंक से बबूल
कट गए,ॠतु बदल रही
लाड़लों को भाए निर्माण का संकल्प
जड़ता कटुता के ओरे सी नींव ढही
हरसाई धान और धरती पियार की
डार...
पोटरी हैं गंध की ये डंठ
कंद है मकरंद
कभी जड़ और चेतन कहीं
प्रकृति है अचरजभरी औ स्वच्छंद
पर्व रूपी रस गंध के शृंगार की
डार...फिर महक
क्षेत्रपाल शर्मा
अलीगढ़
दूर खर औखर, जुत गए खेत
सुर और लय में बयार बही
नवराते गुनगुनाए तितलियों समेत
सुधि आई दशमी, जीत दीप-हार की,
डार ....
काँस फाँस से ये नोंक से बबूल
कट गए,ॠतु बदल रही
लाड़लों को भाए निर्माण का संकल्प
जड़ता कटुता के ओरे सी नींव ढही
हरसाई धान और धरती पियार की
डार...
पोटरी हैं गंध की ये डंठ
कंद है मकरंद
कभी जड़ और चेतन कहीं
प्रकृति है अचरजभरी औ स्वच्छंद
पर्व रूपी रस गंध के शृंगार की
डार...फिर महक
क्षेत्रपाल शर्मा
अलीगढ़
वेला सकाल की सोनई भई,
जवाब देंहटाएंदूर खर औखर, जुत गए खेत
सुर और लय में बयार बही
अभिनव बिम्ब. बधाई.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
महोदय बहुत धन्यवाद . देर जो हुई उसके लिए माफ़ कर दें
हटाएंआपका क्षेत्रपाल शर्मा
महोदय बहुत धन्यवाद . देर जो हुई उसके लिए माफ़ कर दें
हटाएंआपका क्षेत्रपाल शर्मा
सुंदर रचना हेतु बधाई
जवाब देंहटाएंमहोदय बहुत धन्यवाद . देर जो हुई उसके लिए माफ़ कर दें
हटाएंआपका क्षेत्रपाल शर्मा
डार...
जवाब देंहटाएंपोटरी हैं गंध की ये डंठ
कंद है मकरंद
कभी जड़ और चेतन कहीं
प्रकृति है अचरजभरी औ स्वच्छंद
पर्व रूपी रस गंध के शृंगार की
डार...फिर महक
सुंदर पंक्तियाँ
बधाई आपको
रचना
बहुत धन्यवाद . देर जो हुई उसके लिए माफ़ कर दें
हटाएंआपका क्षेत्रपाल शर्मा