बाँध दिए
नज़रों से फूल हरसिंगार के
तुमने कुछ बोल दिया
चर्चे हैं प्यार के
मौसम का
रंग-रूप और अधिक निखरा है
सैलानी मन मेरा आसपास बिखरा है
आज मिला कोई बिन चिट्ठी,
बिन तार के
उतरे हैं
पंछी ये झुकी हुई डाल से
रिझा गया कोई फिर नैन, नक्श, चाल से
टीले मुस्तैद खड़े जुल्फ़ को
संवार के
बलखाती
नदियों के संग आज बहना है
अनकहा रहा जो कुछ आज वही कहना है
अब तक हम दर्शक थे नदी के
कगार के
- जयकृष्ण राय तुषार
इलाहाबाद
आ जयकृष्ण राय जी, बहुत रसीले प्रेमगीत के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएं'मौसम का
रंग-रूप और अधिक निखरा है
सैलानी मन मेरा आसपास बिखरा है
आज मिला कोई बिन चिट्ठी,
बिन तार के'
बहुत सरल शब्दों में अप्रतिम सौंदर्य को जिया है आपने इस गीत में.
गीत में हल्का संशोधन कर दें
जवाब देंहटाएंबांध रहे
नज़रों को
फूल हरसिंगार के |
आभार
बहुत सुंदर अनकहा कह रही है रचना आपकी ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रेमगीत है, बहुत बहुत बधाई जयकृष्ण राय जी को
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर नवगीत है। जयकृष्ण राय जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंप्रेम और शृंगार का अप्रतिम मिश्रण है इस नवगीत में | बधाई और धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंउतरे हैं
जवाब देंहटाएंपंछी ये झुकी हुई डाल से
रिझा गया कोई फिर नैन, नक्श, चाल से
टीले मुस्तैद खड़े जुल्फ़ को
संवार के
भावों और शब्दों का सुंदर संगम है आपका नवगीत
बधाई आपको
रचना