
कोठिला में
फुर्सत में गाँव है
गर्मी की दुपहर है
महुए की छाँव है
आम हुए
पकने को
डाल डाल महक उठी
बरसों के बाद आज
अमराई चहक उठी
बचपन को मलदहिया
से बड़ा लगाव है
फ्रीज़र का
पानी दे
पास जो इनारा है
बातें हैं बातों का
कहाँ पर किनारा है
घाव हैं नमक है
अनवरत छिडकाव है
उफ़ तक न करे
औ न रहे
तीन पांच में
सोने सा रंग गया
चूल्हे की आँच में
बेचारी दुल्हिन का
सीधा स्वभाव है
-रवि शंकर मिश्र "रवि"
प्रतापगढ़ (उ.प्र.)
सुंदर नवगीत के लिए रवि जी को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर नवगीत है।
जवाब देंहटाएंsundar navgeet. badhai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत. बधाई!
जवाब देंहटाएंसुंदर नवगीत!
जवाब देंहटाएंसोने सा रंग गया
जवाब देंहटाएंचूल्हे की आँच में
बेचारी दुल्हिन का
सीधा स्वभाव है
बिलकुल गाँव से जोडते हुए भाव ...सुन्दर गीत के लिए बधाई रवि जी को
ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ा एक सुन्दर नवगीत. गांव में बिताई गर्मी की छुट्टियों की याद दिलाता हुआ.
जवाब देंहटाएं'सोने सा रंग पाया
जवाब देंहटाएंचूल्हे की आँच में
बेचारी दुल्हन का
सीधा स्वभाव है '
सुन्दर भावपूर्ण रचना ।
बहुत सुन्दर सशक्त नवगीत के लिए वधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सशक्त नवगीत के लिए वधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !!!!!!!!!!!!!! वधाई हो
जवाब देंहटाएंफसल गयी कोठिला में फुर्सत में गाँव है
जवाब देंहटाएंगर्मी की दुपहर है महुए की छाँव है
सुंदर रचना, रविशंकर जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
रवि जी, गर्मी में एक तो दुल्हन का घूंघट और तपता चूल्हा , बहुत सुन्दर बिम्ब है इस नवगीत में | बधाई
जवाब देंहटाएंकोठिला, दुपहर, मलदहिया, घूल्हे की आंच आदि ने ठेठ गंवई जमीनी गंध से सराबोर करने के साथ-साथ 'फ्रीजर की शहरी छवि भी समाहित की है जो समन्वय तथा अंतर्विरोध दोनों प्रवृत्तियों का सूचक है, यही तत्व 'तीन पाँच' और 'सीधा स्वभाव' भी इंगित करता है. बधाई..
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