हाहाकार मचा है भीतर
अधरों पर है सूनापन
ऊपर टँगी
हुई है आँखें
अम्बर लाये रूखापन
तपते सूरज ने झुलसाया
गात सुनहरा तप्त हुआ
अम्बुआ की डाली का झूला
मौन हुआ अभिशप्त हुआ
तकुवे-सी
चुभती महँगाई
गर्मी लाई सीने में
छुन-छुन करता
गर्म तवे-सा
मनवा हुआ पसीने में
सबसे जाकर
बतियाते हैं
चल ले आयें नन्दन-वन
आपाधापी के इस युग में
चैन कहाँ आराम कहाँ
साध बड़ी है महानगर की
छोटी नगरी काम कहाँ
सालों साल
बिताते तन्हा
करें प्रतीक्षा दम साधे
गर्मी तन-मन
को झुलसाए
पीर जिया को है बाँधे
ओ रे बदरा !
सुन लो अब तो
चल ले आयें अमृत घन
गीता पंडित
नई दिल्ली
अधरों पर है सूनापन
ऊपर टँगी
हुई है आँखें
अम्बर लाये रूखापन
तपते सूरज ने झुलसाया
गात सुनहरा तप्त हुआ
अम्बुआ की डाली का झूला
मौन हुआ अभिशप्त हुआ
तकुवे-सी
चुभती महँगाई
गर्मी लाई सीने में
छुन-छुन करता
गर्म तवे-सा
मनवा हुआ पसीने में
सबसे जाकर
बतियाते हैं
चल ले आयें नन्दन-वन
आपाधापी के इस युग में
चैन कहाँ आराम कहाँ
साध बड़ी है महानगर की
छोटी नगरी काम कहाँ
सालों साल
बिताते तन्हा
करें प्रतीक्षा दम साधे
गर्मी तन-मन
को झुलसाए
पीर जिया को है बाँधे
ओ रे बदरा !
सुन लो अब तो
चल ले आयें अमृत घन
गीता पंडित
नई दिल्ली
गीता पंडित जी को इस शानदार नवगीत के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंआभार धर्मेन्द्र जी...
हटाएंशुभ कामनाएँ ..
pyaraa navgeet...badhi kavayitree ko.. baraso baad parhaa itnaa mohak navgeet...
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर ..
हटाएंप्रणाम और शुभ कामनाएँ
सादर
bahut achcha geet hai
हटाएंbahut sundar
हटाएंआभार सर
हटाएं.सादर
गीता पंडित ..
गीता जी , आपके इस नवगीत की ताज़गी ,रवानगी सभी शानदार हैं ।'करें प्रतीक्षा दम साधे' - के स्थान पर ( यह केवल सुझाव है, मानना ज़रूरी नहीं) बाट देखते दम साधे करें तो शायद अधिक प्रवाह आ जाए !
जवाब देंहटाएंमौसम और महँगाई की मार से मृतप्राय ,झुलसे हुए तन-मन की संवेदनाओं को मधुर-मोहक अभिव्यक्ति दी आपने |
जवाब देंहटाएंबधाई |
आभारी हूँ आपकी..
हटाएंसालों साल
जवाब देंहटाएंबिताते तन्हा
करें प्रतीक्षा दम साधे
गर्मी तन-मन
को झुलसाए
पीर जिया को है बाँधे.... बहुत सुन्दर पंक्तियाँ, बहुत सुन्दर नवगीत. मन की ग्रीष्म से साक्षात्कार करता हुआ. बधाई आपको.
आभार सर..
हटाएं' ओ रे बदरा !
जवाब देंहटाएंसुन ले अब तो
चल ले आएं अमृत घन'
गर्मी मेँ तो बादल ही ठण्डक पंहुचा सकते हैं ....!
सुन्दर नवगीत ।
आभार आपका..
हटाएंबहुत सुन्दर नवगीत है,
जवाब देंहटाएंआभार सर..
हटाएंतपते सूरज ने झुलसाया
जवाब देंहटाएंगात सुनहरा तप्त हुआ
अम्बुआ की डाली का झूला
मौन हुआ अभिशप्त हुआ
सबसे जाकर
बतियाते हैं
चल ले आयें नन्दन-वन
बहुत ही सुंदर नवगीत, गीता जी,हार्दिक बधाई।
आभार कल्पना जी..
हटाएंगीता पंडित का यह गीत अच्छा है| इसमें नवगीत की बिम्ब-योजना है, पर इसकी कहन में यदि थोड़ी सहजता और होती तो सम्भवतः यह एक उच्च कोटि का नवगीत बन जाता| गीता जी के गीत नवगीत की परिधि को छूते तो हैं, पर मुकम्मिल नवगीत बनने से ज़रा सा रह जाते हैं| मेरी कामना है कि भविष्य के उनके गीत इस दुविधा से उबर पायें| एक अच्छी रचना के लिए साधुवाद!
जवाब देंहटाएंप्रणाम सर !
हटाएंआपके दिशा-निर्देश के लियें हृदय से आभारी हूँ |
'कहन" के विषय में कुछ और स्पष्ट रूप से कहेंगे तो मुझे अधिक सहायता मिलेगी...
सादर
गीता पंडित
मोहक नवगीत गीता जी ....बधाई स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंगीता जी, गर्मी से जूझते तन मन का बादलों से आह्वान करता हुआ सुन्दर नवगीत है आपका | बधाई |
जवाब देंहटाएंआपाधापी के इस युग में चैन कहाँ आराम कहाँ
जवाब देंहटाएंसाध बड़ी है महानगर की छोटी नगरी काम कहाँ
सुंदर रचना, गीता जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
बहुत खूब... कथन और कहाँ के समन्वय को सुरीलेपन से सधता यह नवगीत मन को स्पर्श करता है. अम्बुआ, तकुए, छुन-छुन, मनवा, जिया, बदरा, बतियाते आदि लोक शब्दों के साथ अधर, अम्बर, गात, मौन, अभिशप्त, प्रतीक्षा जैसे बौद्धिक जगत में बोले जानेवाले शब्द गंगा-जमुनी भाव लोक की सृष्टि करते हैं. शिल्प के स्तर पर गीत नवगीत की सीमारेखा पर रचित इन गीतों का माधुर्य, बिम्ब, रस, लय आदि इन्हें पठनीय बनाते हैं. गीता जी बधाई.. आप अपनी शैली की जीवन्तता बनाये रखें.
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