5 जून 2012

३. शामियाने धूप के

शामियाने धूप के
भू से गगन तक छा गये.
ग्रीष्म आओ पाहुने
अच्छा हुआ तुम आ गये.

तुम जो आये
शीत के षड्यंत्र निष्फल
कोख से जन्मे वनस्पति के सुकोमल गात.
अमलतासों, टेसुओं के अधर छूकर
कीट मधुपायी, शलभ
करने लगे रसबात.
पूत जन्मे घर किसानी के
जिया हुलसा गये.

तुम जो आये
मस्त महुआ विरहिणी पिक कंठ फूटे
आम, लीची, फालसे, तरबूज.
दीन जामुन, बेल, आडू
ककड़ियों के दिन फिरे
क्या खूब.
शर्बतों, ठंडाइयों की
देह में प्राण आ गये.


तुम जो आये
ताल, पोखर, कूप, बापी
बचपने के मास्टर बनकर उमेठे कान
तिरिषा के लगे माने बताने.
फिर खुला अध्याय 'देवानां प्रियदर्शी'
सरायों, वृक्षरोपण के पड़े
किस्से पुराने.
स्वर्णयुग में जन्म लेने की
कसक उमगा गये.

-रामशंकर वर्मा
लखनऊ

15 टिप्‍पणियां:

  1. इस सुंदर नवगीत के लिए रामशंकर जी को बधाई

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  2. भाई रामशंकर वर्मा का क्लासिकी अंदाज़ का यह गीत अद्भुत बन पड़ा है|तमाम सजीव स्मृति-बिम्ब इस नवगीत में सँजोये गये हैं, जो इसे अनूठा बनाते हैं|यदि इस नवगीत पाठशाला की यह उपलब्धि-रचना बन जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा मुझे| मेरा हार्दिक साधुवाद कवि एवं 'अनुभूति' परिवार को|

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    1. आदरणीय रवीन्द्र जी, बहुत अच्छा लगा आपकी प्रशंसा पाकर. नवगीत को अभी मैं पढ़ रहा हूँ यहाँ पाठशाला में. एक कोशिश की थी. और वो सार्थक हुई. पुनः धन्यवाद.

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  3. बहुत ही सुन्दर गीत है ....गीत का मुखडा ही मोह गया ...अंतरे भी बहुत सुन्दर ..बधाई स्वीकार करें राम शंकर जी

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    1. धन्यवाद सन्ध्या जी. आप हमेशा मार्गदर्शन करती हैं.

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  4. कुमार रवींद्र जी के कहने के बाद कुछ कहने को बाकी नहीं रहा। बहुत बहुत बधाई रामशंकर जी को इस शानदार नवगीत के लिए

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    1. धन्यवाद धर्मेन्द्र जी. गीत को शानदार कह कर आपने मुझे बल्लियों उछलने का सुअवसर दिया. आभार ह्रदय से.

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  5. नवगीत के मानक मापदंडों पर सौ टके खरा यह नवगीत उन रचनाकारों के लिये उदाहरण है जो गीत-नवगीत की सीमा रेखा पर खड़े नवगीत की ओर बढ़ना चाहते हैं. निस्संदेह यह नवगीत इस कार्यशाला की उपलब्धि है. मुखड़े और अंतरे में भिन्न पदभार के छन्दों का निपुणता से प्रयोग दृष्टव्य है. सटीक बिम्बमय शब्दचित्र की सजीव उपस्थिति पाठक को रचना से जोड़ती है. बहुत-बहुत बधाई. .

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  6. संजीव वर्मा जी, आभार ह्रदय से. यहाँ पाठशाला में आकर काफी कुछ सीखा मैंने. कुमार रविन्द्र, महेश्वर तिवारी, डाक्टर बुद्धिनाथ मिश्र, शिव बहादुर सिंह भदौरिया, यश मालवीय, राधेश्याम बंधु, आदि अनेकानेक पुरोधा नवगीतकारों के नवगीतों से, उनके विचारों से नवगीत के कलेवर,विकास और प्रासंगिकता पर बहुत कुछ जानने को मिला. बहुत बार ऐसा होता है कि हम युग बोध के कारण, समकालीन प्रवत्तियों से अनभिग्य होते हुए भी ऐसी रचनाएँ लिखते हैं, जिनके बारे में हमें स्वयं नहीं पता होता कि यह किस कोटि की हैं. जैसे कि मैंने इस तरह के और भी गीत लिखे हैं, पर अब पता चला कि वो तो नवगीत हैं.

    प्रशंसा के लिए आभार.

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