नीम तले सब ताश खेलते
रोज सुबह से शाम
कई महीनों बाद मिला है
खेतों को आराम
फिर पत्तों के चक्रव्यूह में
धूप गई है हार
कुंद कर दिए वीर प्याज ने
लू के सब हथियार
ढाल पुदीने सँग बन बैठे
भुनकर कच्चे आम
छत पर जाकर रात सो गई
खुले रेशमी बाल
भोर हुई सूरज ने आकर
छुए गुलाबी गाल
बोली छत पर लाज न आती
तुमको बुद्धू राम
शहर गया है गाँव देखने
बड़े दिनों के बाद
समय पुराना नए वक्त से
मिला महीनों बाद
फिर से महक उठे आँगन में
रोटी बोटी जाम
-धर्मेन्द्र कुमार सिंह सज्जन
रोज सुबह से शाम
कई महीनों बाद मिला है
खेतों को आराम
फिर पत्तों के चक्रव्यूह में
धूप गई है हार
कुंद कर दिए वीर प्याज ने
लू के सब हथियार
ढाल पुदीने सँग बन बैठे
भुनकर कच्चे आम
छत पर जाकर रात सो गई
खुले रेशमी बाल
भोर हुई सूरज ने आकर
छुए गुलाबी गाल
बोली छत पर लाज न आती
तुमको बुद्धू राम
शहर गया है गाँव देखने
बड़े दिनों के बाद
समय पुराना नए वक्त से
मिला महीनों बाद
फिर से महक उठे आँगन में
रोटी बोटी जाम
-धर्मेन्द्र कुमार सिंह सज्जन
एक पूरी अनुभव-अनुभूति गाथा है धर्मेन्द्र जी, आपके इस नवगीत में| एक श्रेष्ठ रचना के लिए मेरा हार्दिक साधुवाद स्वीकारें|
जवाब देंहटाएंनवगीत की पाठशाला के लिए लिखने का एक आकर्षण आपका अशीर्वाद पाना भी रहता है। बहुत बहुत धन्यवाद इस अपरिमित स्नेह के लिए।
हटाएंफुर्सत के दिनों का बहुत सुंदर वर्णन किया है आपने धर्मेन्द्र जी, बधाई
जवाब देंहटाएंगर्मी के दिन वाकई फुर्सत के ही दिन होते हैं। बहुत बहुत धन्यवाद कल्पना जी
हटाएंमेरी त्वरित प्रतिक्रिया है "वाह..", "कमाल". मुखड़े का क्या कहना? और अंतरे एक से बढ़कर एक...'फिर पत्तों के चक्रव्यूह में
जवाब देंहटाएंधूप गई है हार', 'छत पर जाकर रात सो गई
खुले रेशमी बाल', 'शहर गया है गाँव देखने
बड़े दिनों के बाद' जैसी पंक्तियों के गहने पहने इस सुन्दर नवगीत के लिए बहुत बहुत बधाई धर्मेन्द्र जी.
सुन्दर गीत.............................
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंशहर गया है गाँव देखने बड़े दिनों के बाद
जवाब देंहटाएंसमय पुराना नए वक्त से मिला महीनों बाद
सुंदर रचना, धर्मेन्द्र जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंधर्मेन्द्र जी, पत्तों के चक्रव्यूह में धूप का हारना अच्छा प्रयोग लगा | पूरा का पूरा नवगीत एक दृश्य खींच गया | बधाई आपको |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शशि पाधा जी
हटाएंसुंदर नवगीत के लियें
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी! आपको बधाई...
धन्यवाद गीता जी
हटाएंगाँव का सजीव चित्र ..सुन्दर शब्दों में ...बधाई धर्मेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंगाँव का सजीव चित्र ..सुन्दर शब्दों में ...बधाई धर्मेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंनीम तले सब ताश खेलते
जवाब देंहटाएंरोज सुबह से शाम
एक चित्र खींचती रचना ...बहुत सुन्दर ...बधाई धर्मेन्द्र जी
शुक्रिया संध्या जी
हटाएंधर्मेन्द्र जी, आप हमेशा नए प्रयोग करते हैं, इसलिए आपके गीत पढ़ने का अपना एक अलग आनंद है. यह गीत भी नवीनता से परिपूर्ण है. शहर गया है गांव देखने, छत पर जाकर रात सो गई जैसी पन्तियाँ इस गीत को जादुई रूप दे रही हैं. बधाई आपको इतने सुन्दर "नव"गीत के लिए.
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी, आप हमेशा नए प्रयोग करते हैं, इसलिए आपके गीत पढ़ने का अपना एक अलग आनंद है. यह गीत भी नवीनता से परिपूर्ण है. शहर गया है गांव देखने, छत पर जाकर रात सो गई जैसी पन्तियाँ इस गीत को जादुई रूप दे रही हैं. बधाई आपको इतने सुन्दर "नव"गीत के लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया परमेश्वर जी
हटाएंधर्मेन्द्र जी का यह नवगीत गाँव से शहर पलायन.. और शहर से गाँव वापिसी के जीवनक्रम में मँहगाई को इंगित करती है '' कुंद कर दिए वीर प्याज ने / लू के सब हथियार / ढाल पुदीने सँग बन बैठे / भुनकर कच्चे आम' गर्मी में लू का प्रकोप, बचने के लिये पारंपरिक उपायों का ज़िक्र इस नवगीत को स्मरणीय बनाता है. बहुत बधाई. ''छत पर जाकर रात सो गई / खुले रेशमी बाल / भोर हुई सूरज ने आकर / छुए गुलाबी गाल / बोली छत पर लाज न आती / तुमको बुद्धू राम'' मर्यादित श्रृंगार का यह शब्द चित्र अपूर्व है...
जवाब देंहटाएंइस अपार स्नेह के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी
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