दहकने लगा है नभ
धरा भी दग्ध हो गई
कैसी बात हो गई ?
बादलों के दल किसी
दूर देस जा बसे
राजसी पोशाक में
सूर्य खिल खिल हँसे
षोडशी धूप आज
राज रानी
हो गई
कैसी बात हो गई ?
दिन लंबे हो गए
ताड़ के पेड़ से
गिर पड़ी है ऊँघती
हवा भी गर्म मेंड़ से
गुनगुने ताल में
रात मुँह
धो गई
कैसी बात हो गई ?
झिलमिलाने लगीं
झील में परछाइयाँ
पनघटों की भीड़ में
गीत, गलबाहियाँ
पसीजती चाँदनी
ओस कण
बो गई
कैसी बात हो गई ?
छाँव का मोल आज चौगुणा
हो गया
धूप के हाट में
चैन कहीं खो गया
जेठ की दुपहरी
आँख मूँद
सो गई
कैसी बात हो गई ?
शशि पाधा
यू.एस.ए.
छाँव का मोल आज चौगुणा हो गया
जवाब देंहटाएंधूप के हाट में चैन कहीं खो गया
अति सुन्दर, शशि पाधा जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
विमल कुमार जी,
हटाएंअपनी पसंद की पंक्तियों को रेखांकित करने के लिए और गीत को सराहने के लिए आपका धन्यवाद |
दिन लंबे हो गए
जवाब देंहटाएंताड़ के पेड़ से
गिर पड़ी है ऊँघती
हवा भी गर्म मेंड़ से
गुनगुने ताल में
रात मुँह
धो गई...इन पंक्तियों ने ग्रीष्म को आइना दिखा दिया है. सम्मोहक नवगीत के लिए बधाई आ शशी जी.
सुंदर गीत के लिए शशि पाधा जी को बधाई
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद धर्मेन्द्र जी |
हटाएंशशि पाधा
प्रकृति का सुंदर वर्णन और सुंदर नवगीत। बधाई शशि जी!
जवाब देंहटाएंसुशीला जी, प्रकृति ही मेरी कलम की नोक पर बैठी मुझसे लिखवाती है | आपका बहुत बहुत आभार |
हटाएंशशि पाधा
गिर पड़ी है ऊँघती
जवाब देंहटाएंहवा भी गर्म मेंड़ से
गुनगुने ताल में
रात मुँह
धो गई
........ बहुत सुंदर ...
बधाई दी! आपको....
गुनगुने ताल मेँ
जवाब देंहटाएंरात मुँह
धो गई
कैसी बात हो गई ।
... सुन्दर रचना ।
आपको यह पंक्तियाँ पसंद आईं, गीत पसन्द करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सुरेन्द्रपाल जी |
हटाएंशशि पाधा
सुंदर नवगीत के लिए बधाई शशि जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कल्पना जी, आपकी कल्पना और लेखनी को नमन |
हटाएंशशि पाधा
दिन लंबे हो गए
जवाब देंहटाएंताड़ के पेड़ से
गिर पड़ी है ऊँघती
हवा भी गर्म मेंड़ से
गुनगुने ताल में
रात मुँह
धो गई ...बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं. अच्छे नवगीत के लिए आ शशी जी को बधाई.
शशि पाधा जी का यह नवगीत परीकथाओं के राजकुमारों की स्मृति में सूरज को राजसी पोशाक में तथा धूप को राजरानी के रूप में देखता है. बिम्ब सटीक है. बधाई. 'ताड़ के पेड़' मुहावरे का प्रयोग अच्छा हुआ है. हवा का तालाब में मुँह धोना... क्या बात है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी, आपसे बहुत कुछ सीखा है और लगातार सीख रहे है विशेषतय:दोहा छन्द | इस गीत के बिम्बों को रेखांकित करने के लिए आपका आभार |
हटाएंशशि पाधा
आपका गीत मोहक प्रतीकों से सजा है ...एक सुन्दर नवगीत हेतु बधाई शशि पाधा जी
जवाब देंहटाएंसंध्या जी,
हटाएंधन्यवाद आपका |
आपका गीत मोहक प्रतीकों से सजा है ...एक सुन्दर नवगीत हेतु बधाई शशि पाधा जी
जवाब देंहटाएंदिन लंबे हो गए
जवाब देंहटाएंताड़ के पेड़ से
गिर पड़ी है ऊँघती
हवा भी गर्म मेंड़ से
गुनगुने ताल में
रात मुँह
धो गई ...इन पंक्तियों को पढकर लगता है कि कितना सुन्दर खाका एक कलाकार खींच सकता है शब्दों के माध्यम से. सुन्दर गीत हेतु बधाई आ शशी जी.