लाल भभूका सूरज आता
पौ फटते ही आँख दिखाता
धूप के बिस्तर पर अलसाता
गर्मी का
देहाती दिन
कतरन वाला पंखा झलते
हुई बुआ की लाल हथेली
इधर उधर से हवा चुरा कर
अम्मा के आँचल ने ले ली
उबासियों की परत जमाता
गर्मी का
देहाती दिन
छत की कड़ियों से चिपके हैं
सहमे सहमे डरे कबूतर
कोटर में से तके चिरैया
प्यास कंठ में अटका कर
सांझ ढले भी छुप न पाता
गर्मी का
देहाती दिन
दादा जी की खाट सरकती
संग नीम की छाया के
जंग पसीने से दिनभर है
वस्त्र भिगोती काया के
शहर एक भी बिता न पाता
गर्मी का
देहाती दिन
कच्ची अमिया खट्टी इमली
गई दुपहरी भर चटखारे
घूंघट में से नयी बहुरिया
चूल्हे ऊपर खीज उतारे
बीत गया बिन चप्पल छाता
गरमी का
देहाती दिन
संघर्षों की गर्म हवा से
नमी भाव की सूखी जाए
सूखे पत्तों से उड़ते हैं
चाहे भाग्य जिधर ले जाए
कुदरत पर निर्भर हो जाता
गर्मी का
देहाती दिन
-संध्या सिंह
लखनऊ
"कच्ची अमिया खट्टी इमली
जवाब देंहटाएंगई दुपहरी भर चटखारे
घूंघट में से नयी बहुरिया
चूल्हे ऊपर खीज उतारे
बीत गया बिन चप्पल छाता
गरमी का
देहाती दिन"
बहुत सुंदर !
आपका अत्यंत आभार सुशीला जी ....
हटाएंएक अच्छे गीत के लिए संध्या जी को बधाई
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार धर्मेन्द्र जी .....
हटाएंग्रामीण परिवेश का सुंदर वर्णन करता हुआ
जवाब देंहटाएंएक सुंदर नवगीत ...
बधाई स्वीकार करें संध्या जी...
ह्रदय से आभारी हूँ गीता जी
हटाएंदेहात की गर्मी का इतना सुंदर जीवंत चित्रण बहुत भाया। संध्या जी आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार कल्पना जी .....आपके सुन्दर शब्द प्रेरक हैं मेरे लिए
हटाएंग्रामीण परिवेश का सुन्दर चित्रण .....!
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं ।
हार्दिक आभार सुरेन्द्रपाल जी गीत आपको पसंद आया
हटाएंआ संध्या जी, प्रगति के इस दौर में देहात की यथार्थता को चिन्हित करते हुए भावपूर्ण नवगीत के लिए आपको बधाई.
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद परमेश्वर जी आपने इतने सुन्दर शब्दों में प्रशंसा की
हटाएंत्यागो बिस्तर मुहं अँधेरे,
जवाब देंहटाएंभ्रमण को निकलो नदी किनारे,
मलयज के झोंके हैं आते,
खग कू कू के गीत सुहाते,
जहाँ पूर्वा बहे मनमानी,
गर्मी की सुबह का सुख जानी,
गर्मी की ऋतु सुबह सुहानी !
संध्या जी, गर्मी के दिनों का बहुत सुंदर वर्णन किया है आपने. प्रात: मुहं अँधेरे शैय्या त्याग कर नदी किनारे भ्रमण को निकला जाये, कुछ व्यायाम किया जाए तो कैसा रहेगा!
जवाब देंहटाएंयह जो आपका देहाती दिन है, इतना जाग्रत और सजीव है कि लगता है जैसे सामने उपस्थित हो| ग्राम्य परिवेश के सहज बिम्बों का यह संयोजन पता नहीं कितनी पुरा-स्मृतियों को जगा गया| मेरा हार्दिक साधुवाद स्वीकारें, संध्या सिंह जी इस सुंदर रचना के लिए|
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपके इन प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिए कुमार रविन्द्र जी
हटाएंयह नवगीत ग्राम्य जीवन की झलकियाँ प्रस्तुत करता है. बिस्तर पर अलसाता, उबासियों की परत जमाता, कुदरत पर निर्भर हो जाता आदि शब्दावलियाँ परिस्थिति का सटीक घित्रण हैं. दादा जी की खाट, नीम की छाया, लाल भभूका सूरज, कतरन वाला पंखा, अम्मा का आँचल आदि अनेक स्मृतियों को जीवन करते हैं. संध्या जी को बधाई...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार संजीव जी .....आपकी प्रोत्साहित करती विस्तृत टिप्पणी अभिभूत कर गयी
हटाएंसंध्या जी, जितनी भी बार पढ़ा यह नवगीत और -और दृश्य सामने आते गए | देहात में गर्मी के दिन का इतना सुन्दर वर्णन मन को बचपन के देहात में ले गया | बहुत सशक्त अभिव्यक्ति | बधाई |
जवाब देंहटाएंइन सुन्दर प्रेरक शब्दों के लिए आभारी हूँ शशि जी
हटाएंवाह वाह 'गर्मी का देहाती दिन'.... सुन्दर चित्रकारी शब्दों की !!
जवाब देंहटाएंभीषण गर्मी में भी ठंडक और सुकून देते इस सुंदर नवगीत पर बहुत बहुत बधाई संध्या जी !
ह्रदय से आभार निशा जी ...आपके सुन्दर प्रेरक शब्द सदैव यूँ ही ऊर्जा देते रहें
हटाएंatyant sundar rachna hai
जवाब देंहटाएं