11 जून 2012

१०. रखे वैशाख ने पैर

रखे वैशाख ने पैर
बिगुल बजाती,
लगी दौड़ने
तेज़-तेज़ फगुनाहट

खिले गुलमुहर दमक उठी फिर
हरी चुनर पर छींट सिंदूरी!
सिहर उठी फिर छाँह
टपकती पकी निबौरी
झरती मद्धम-मद्धम
जैसे
पंखुरी स्वागत

साथ हवा के लगे डोलने
अमलतास के सोन हिंडोले!
धूप ओढनी चटक
दुपहरी कैसे ओढ़े
धूल उड़ाती गली
गली
मौसम की आहट

पूर्णिमा वर्मन
शारजाह

16 टिप्‍पणियां:

  1. रखे वैशाख ने पैर
    बिगुल बजाती,
    लगी दौड़ने
    तेज़-तेज़ फगुनाहट
    भरी गर्मी में कुदरत का मनभावन रूप प्रस्तुत करता हुआ गीत
    अति सुंदर!पूर्णिमा जी बधाई आपको।

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    1. रचना पसंद करने के लिये हार्दिक आभार कल्पना जी
      -पूर्णिमा वर्मन

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  2. परमेश्वर फुंकवाल11 जून 2012 को 11:18 am बजे

    आ पूर्णिमा जी, आपका नवगीत जहाँ एक ओर गुलमोहर और अमलतास के सौंदर्य को अमरत्व देता है वही इतने कम शब्दों में वैशाख को पूर्णतः परिभाषित भी करता है. इस सुन्दर नवगीत के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.

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    1. आपके प्रेरक शब्दों के लिये बहुत बहुत धन्यवाद परमेश्वर जी

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  3. बिना तुकांत के, एक नए छंद में कथ्य को कैसे समेटा जाय, आपका नवगीत इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है। बहुत बहुत बधाई स्वीकारें

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  4. फगुनाहट को अलविदा कहता और ग्रीष्म की आहटों-छवियों को सँजोता आपका यह नवगीत सहेजने योग्य है|'बिगुल बजाती लगी दौड़ने तेज़-तेज़ फगुनाहट','सिहर उठी फिर छाँह','अमलतास के सोन हिंडोले'जैसे बिम्ब एकदम अछूते-अनूठे बन पडे है। बहन पूर्णिमा वर्मन जी, मेरा हार्दिक साधुवाद स्वीकारें इस निदाघ-गीत के लिए|

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    1. आपके आशीर्वाद का हार्दिक आभार, ये शब्द मुझे प्रेरित करते रहेंगे।

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  5. आपका गीत ने धूप को खलनायक नहीं बनाया ......बहुत सुन्दर गीत जो बैसाख की सुंदरता से मुग्ध है प्रकृतिप्रेम छलका पडता है आपके सभी गीतों में बहुत सुन्दर उपमाएं ...बधाई इस नवगीत हेतु पूर्णिमा जी

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  6. ' साथ हवा के लगे डोलने
    अमलतास के सोन हिंडोले
    धूप ओढ़नी चटक
    दुपहरी कैसे ओढ़े
    धूल उड़ाती गली
    गली
    मौसम की आहट '
    मौसम की आहट का अतिसुन्दर चित्रण ...।

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    1. धन्यवाद सुरेन्द्र पाल जी, आपको समूह में पहली बार देख रही हूँ आप क्या क्या लिखते हैं?

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  7. बिगुल बजाती फगुनाहट, टपकती पकी निबौरी, गुलमुहर की सिंदूरी छींट, दुपहरी की चटक ओढ़नी मौलिक और अछूते बिम्ब... जमीं से जुड़ी रचना हेतु बधाई.

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  8. पूर्णिमा जी, रचना के शब्द सौंदर्य ने गर्मी की अकुलाहट को हर लिया और फिर अमलतास और गुलमोहर ने खिल के फगुनाई को विदा दे दी | मन मोहक सुन्दर कल्पना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई |
    शशि पाधा

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