13 जून 2012

१३. उमस तपन थकन के दिन

लो फिर आ गए
उमस, तपन, थकन के दिन
उग्रवादी सूरज का अब
हिटलरी राज होगा।

बेघर छाँह के
हर शरणार्थी टुकड़े पर
फिर लगेंगी थके-हारे पथिकों की बोलियाँ
सिर चढ़कर बोलेगी आतंकवादी धूप
लू चलाएगी
फिर अंधाधुंध गोलियाँ
कटार बन जाएंगे पसीनों के पिन
आवारा होगी धूल और
मौसम बाज होगा

उम्रकैद में
होगी फिर से शीतल छाँह
राहत को मिलेगी सजा कालेपानी की,
गली-गली पहरा देंगी
उमस की बेटियाँ
फिर जागेंगी यादें अनायास नानी की
कदमताल करेंगी चिपचिपी चींटियाँ
थककर बैठा संध्या का
सांताक्लाज होगा

राजेश कुमार श्रीवास्तव
नई दिल्ली

6 टिप्‍पणियां:

  1. राजेश जी, बहुत अच्छे बिम्ब हैं पूरे गीत में। रचना बहुत सुंदर और शानदार बन गई है। बधाई आपको।

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    1. धन्यवाद कल्पना जी। जो बिम्ब बनाना चाहता था, अगर वे सचमुच प्रतिबिंबित हो गए हैं तो कविता सार्थक हो गई है। एक बार पुनः धन्यवाद।

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  2. सुंदर रचना के लिए राजेश जी को बहुत बहुत बधाई

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  3. उग्रवादी सूरज का हिटलरी राज्य, लू की गोलियाँ, पसीने की कटार, उमस की बेटियां... अनूठी कल्पनाएँ. सरस गीत हेतु बधाई...

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  4. राजेश जी , एक दम नए बिम्ब, नए स्वर मिले आपकी इस रचना में | बधाई आपको |
    शशि पाधा

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