महुए से भरा हुआ गाँव —
गाँव मेरा है।
अनछुआ रहा सब दिन
शहर के कुएँ से
पीता है गंगाजल
खोद कर कुएँ से
खुशबू की बाँहों में गाँव —
गाँव मेरा है।
तपी तपी पगडंडी
जेठ का महीना
सोख रही धूल
अंग अंग का पसीना
जेठी मधु सा मीठा गाँव —
गाँव मेरा है।
मिहनत भर गीत है
हर चेहरा सादा है
यहाँ नहीं बादशाह
यहाँ यही ज्यादा है
यादों में टापू सा गाँव —
गाँव मेरा है।
— राजमणि राय 'मणि
अच्छी रचना के लिए राजमणि जी को बधाई, ज्यादा की जगह प्यादा होना चाहिए।
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