1 सितंबर 2012

उपलब्धियाँ जाने कहाँ ले आईं हमको -

उपलब्धियाँ आज जीवन की आवश्यकता हैं। वे धन के क्षेत्र में हों या कार्यक्षेत्र में हर कोई उन्हें पाने को बेचैन रहता है लेकिन इन्हीं उपलब्धियों के चलते हम अपने परिवार और स्वजनों से कटने भी लगते हैं। कभी गाँव छूटता है, कभी शहर कभी देश तो कभी अपने भी हमसे छूट जाते हैं। उपलब्धियों के शिखर पर बैठे हुए मनुष्य के पास कभी-कभी तो अपना कहने को भी कोई नहीं रह जाता। अपने लोग संकोच में और पराए ईर्ष्या में दूर रहना ही पसंद करते हैं। उपलब्धियों की इस दौड़ में कभी स्वास्थ्य जाता रहता है तो कभी मन की शांति...

तो क्या आज के जीवन की यह सबसे बड़ी आवश्यकता ही हमारी सबसे बड़ी दुश्मन हो गई है? क्या हमें उपलब्धियों से दूर रहना चाहिये? या जीवन में इसका कोई संतुलन बिंदु भी है... घर, परिवार, गाँव, शहर और कार्यक्षेत्रों में उपलब्धियों से जुड़े मानसिक द्वंद्व, सोच, सरोकार और भावनात्मक पहलुओं से जुड़ा है इस कार्यशाला का विषय - उपलब्धियाँ जाने कहाँ ले आईं हमको - लेकिन गीत में इस पंक्ति का प्रयोग नहीं होना चाहिये। सभी कुछ एक गीत में नहीं कहा जा सकता इसलिये इस विषय से जुड़ी संवेदना की किसी छोटी सी टुकड़ी पर भी गीत लिखा जा सकता है। रचना भेजने की अंतिम तिथि है १० सितंबर लेकिन रचनाओं का प्रकाशन जल्दी प्रारंभ कर देंगे। पता है- navgeetkipathshala@gmail.com

2 टिप्‍पणियां:

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