10 सितंबर 2012

१. छूट गयी धरती

मेहनत का फल भी
हमको
अज़ब मिला
छूट गयी धरती
आकाश जब मिला


हम सहेज क्या पाते
रिश्तों को
नातों को
तरस रहा मन अब तो
खुद से दो बातों को
खुलकर हँस लें हम
अवकाश कब मिला


सेंध कौन मार गया
मन के
उल्लास में
उलझ गए हैं हम भी
प्रॉफिट में, लॉस में
कहने को हमको
मधुमास अब मिला


ऐसे में अपना वह
गाँव
याद आता है
आपस में सबका
जुडाव याद आता है
हमने क्या खोया
आभास अब मिला
                            

- रवि शंकर मिश्र "रवि"
राजापुर खरहर
रानीगंज
 प्रतापगढ़

34 टिप्‍पणियां:

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  3. गीत अच्छा है| मेरा हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें एक सधे हुए नवगीत के लिए|
    'सेंध कौन मार गया
    मन के / उल्लास में
    उलझ गए हैं हम भी
    प्रॉफिट में, लॉस में
    कहने को हमको
    मधुमास अब मिला'
    जैसी पंक्तियाँ इसे नवगीत पाठशाला के इस अंक की उपलब्धि-रचना बनाती हैं|
    कुमार रवीन्द्र

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    1. आपका आशीर्वाद पाकर अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार

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  4. पहला ही नवगीत इतना शानदार आ गया। बधाई रवि शंकर जी को

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  5. सुन्दर नवगीत के लिए शुभकामनाएँ ।

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  6. ऐसे में अपना वह
    गाँव
    याद आता है
    आपस में सबका
    जुडाव याद आता है
    हमने क्या खोया
    आभास अब मिला

    बहुत सुंदर नवगीत!

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  7. ऐसे में अपना वह
    गाँव
    याद आता है
    आपस में सबका
    जुडाव याद आता है
    हमने क्या खोया
    आभास अब मिला
    वाकई.....!
    बहुत सुन्दर .....!!!

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  8. डॉ सरस्वती माथुर......

    बहुत सुंदर नवगीत......"सेंध कौन मार गया
    मन के उल्लास में.."शुभकामनाएँ!
    डॉ सरस्वती माथुर

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    1. आपकी सुन्दर टिप्पणी मिली है। अब मेरे मन के उल्लास में कोई सेंध नहीं मार पायेगा।

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  9. परमेश्वर फुंकवाल12 सितंबर 2012 को 7:46 pm बजे

    बहुत सुन्दर नवगीत. हर अंतरे में नवीनता है. बहुत मासूमियत भरे प्रश्न हैं और आज का सजीव चित्र है. बहुत बहुत बधाई.

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  10. अनिल वर्मा, लखनऊ.12 सितंबर 2012 को 8:46 pm बजे

    छूट गयी धरती
    आकाश जब मिला ...बहुत ही सुन्दर. सुन्दर नवगीत के लिये हार्दिक बधाई रवि जी.

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  11. विशेषज्ञ टिप्पणियाँ ही इस नवगीत की उत्कृष्टता सिद्ध कर देती हैं. मुखड़ा:
    मेहनत का फल हमको
    अज़ब मिला.
    छूट गयी धरती
    आकाश जब मिला.......
    सेंध कौन मार गया
    मन के उल्लास में.....
    हमने क्या खोया आभास अब मिला.
    सुन्दर सम्प्रेषण. बधाई रवि जी.

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  12. उत्तम द्विवेदी15 सितंबर 2012 को 4:58 pm बजे

    सुन्दर नवगीत के लिए रवि जी को बहुत-बहुत बधाई !

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  13. रविशंकर मिश्र जी का यह बहुत सुन्दर नवगीत है, एकदम सहज, सरल और सीधे सीधे बातचीत का आभास दिलाता यह नवगीत है-
    "हम सहेज क्या पाते
    रिश्तों को
    नातों को
    तरस रहा मन अब तो
    खुद से दो बातों को "

    वधाई बहुत सुन्दर नवगीत के लिए।

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    1. आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी मेरे लिये बहुत मूल्यवान है। बहुत बहुत आभार

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  14. क्या बात....क्या बात...क्या बात...





    के.यन. मौर्य

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  15. बहुत सुंदर नवगीत
    मेरी बधाई स्वीकार करें ..

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