मेहनत का फल भी
हमको
अज़ब मिला
छूट गयी धरती
आकाश जब मिला
हम सहेज क्या पाते
रिश्तों को
नातों को
तरस रहा मन अब तो
खुद से दो बातों को
खुलकर हँस लें हम
अवकाश कब मिला
सेंध कौन मार गया
मन के
उल्लास में
उलझ गए हैं हम भी
प्रॉफिट में, लॉस में
कहने को हमको
मधुमास अब मिला
ऐसे में अपना वह
गाँव
याद आता है
आपस में सबका
जुडाव याद आता है
हमने क्या खोया
आभास अब मिला
- रवि शंकर मिश्र "रवि"
राजापुर खरहर
रानीगंज
प्रतापगढ़
हमको
अज़ब मिला
छूट गयी धरती
आकाश जब मिला
हम सहेज क्या पाते
रिश्तों को
नातों को
तरस रहा मन अब तो
खुद से दो बातों को
खुलकर हँस लें हम
अवकाश कब मिला
सेंध कौन मार गया
मन के
उल्लास में
उलझ गए हैं हम भी
प्रॉफिट में, लॉस में
कहने को हमको
मधुमास अब मिला
ऐसे में अपना वह
गाँव
याद आता है
आपस में सबका
जुडाव याद आता है
हमने क्या खोया
आभास अब मिला
- रवि शंकर मिश्र "रवि"
राजापुर खरहर
रानीगंज
प्रतापगढ़
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंगीत अच्छा है| मेरा हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें एक सधे हुए नवगीत के लिए|
जवाब देंहटाएं'सेंध कौन मार गया
मन के / उल्लास में
उलझ गए हैं हम भी
प्रॉफिट में, लॉस में
कहने को हमको
मधुमास अब मिला'
जैसी पंक्तियाँ इसे नवगीत पाठशाला के इस अंक की उपलब्धि-रचना बनाती हैं|
कुमार रवीन्द्र
आपका आशीर्वाद पाकर अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार
हटाएंपहला ही नवगीत इतना शानदार आ गया। बधाई रवि शंकर जी को
जवाब देंहटाएंढेर सारे धन्यवाद
हटाएंसुन्दर नवगीत के लिए शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंachcha laga ye geet,badha ho.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंऐसे में अपना वह
गाँव
याद आता है
आपस में सबका
जुडाव याद आता है
हमने क्या खोया
आभास अब मिला
बहुत सुंदर नवगीत!
उत्साहवर्धन हेतु कोटिशः धन्यवाद
हटाएंबहुत अच्छा गीत रवि शंकर जी बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत रवि जी बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंऐसे में अपना वह
जवाब देंहटाएंगाँव
याद आता है
आपस में सबका
जुडाव याद आता है
हमने क्या खोया
आभास अब मिला
वाकई.....!
बहुत सुन्दर .....!!!
अनेकशः धन्यवाद
हटाएंडॉ सरस्वती माथुर......
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत......"सेंध कौन मार गया
मन के उल्लास में.."शुभकामनाएँ!
डॉ सरस्वती माथुर
आपकी सुन्दर टिप्पणी मिली है। अब मेरे मन के उल्लास में कोई सेंध नहीं मार पायेगा।
हटाएंशानदार गीत बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंशानदार गीत बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंअत्यधिक आभार
हटाएंबहुत सुन्दर नवगीत. हर अंतरे में नवीनता है. बहुत मासूमियत भरे प्रश्न हैं और आज का सजीव चित्र है. बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंअत्यधिक आभार
हटाएंछूट गयी धरती
जवाब देंहटाएंआकाश जब मिला ...बहुत ही सुन्दर. सुन्दर नवगीत के लिये हार्दिक बधाई रवि जी.
अत्यधिक आभार
हटाएंविशेषज्ञ टिप्पणियाँ ही इस नवगीत की उत्कृष्टता सिद्ध कर देती हैं. मुखड़ा:
जवाब देंहटाएंमेहनत का फल हमको
अज़ब मिला.
छूट गयी धरती
आकाश जब मिला.......
सेंध कौन मार गया
मन के उल्लास में.....
हमने क्या खोया आभास अब मिला.
सुन्दर सम्प्रेषण. बधाई रवि जी.
अत्यधिक आभार
हटाएंसुन्दर नवगीत के लिए रवि जी को बहुत-बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंरविशंकर मिश्र जी का यह बहुत सुन्दर नवगीत है, एकदम सहज, सरल और सीधे सीधे बातचीत का आभास दिलाता यह नवगीत है-
जवाब देंहटाएं"हम सहेज क्या पाते
रिश्तों को
नातों को
तरस रहा मन अब तो
खुद से दो बातों को "
वधाई बहुत सुन्दर नवगीत के लिए।
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी मेरे लिये बहुत मूल्यवान है। बहुत बहुत आभार
हटाएंक्या बात....क्या बात...क्या बात...
जवाब देंहटाएंके.यन. मौर्य
बहुत सुंदर नवगीत
जवाब देंहटाएंमेरी बधाई स्वीकार करें ..