चारों ओर रोशनी,
फिर भी,भीतर बहुत अँधेरा है
ऊँचे टीले पर बैठा
मन पंछी बहुत
अकेला है !
धूल, धुआँ,
धूप के साए
कंकरीट से रिश्ते पाए
हवा विरोधी, आपाधापी
छाया में भी, तन जल जाए
क्या पाना था? क्या पाया है ?
ख़ुद को कहाँ,
ढकेला है
प्लेटफ़ॉर्म पर
खड़े रह गए,
छूट गईं सब रेलगाड़ियाँ
भोलापन खा गई तरक्की
सीख गए हम कलाबाज़ियाँ
बजा सीटियाँ, समय ने जाने
खेल कौन-सा
खेला है?
डॉ .भावना तिवारी
कानपुर
फिर भी,भीतर बहुत अँधेरा है
ऊँचे टीले पर बैठा
मन पंछी बहुत
अकेला है !
धूल, धुआँ,
धूप के साए
कंकरीट से रिश्ते पाए
हवा विरोधी, आपाधापी
छाया में भी, तन जल जाए
क्या पाना था? क्या पाया है ?
ख़ुद को कहाँ,
ढकेला है
प्लेटफ़ॉर्म पर
खड़े रह गए,
छूट गईं सब रेलगाड़ियाँ
भोलापन खा गई तरक्की
सीख गए हम कलाबाज़ियाँ
बजा सीटियाँ, समय ने जाने
खेल कौन-सा
खेला है?
डॉ .भावना तिवारी
कानपुर
सफलता के दर्द को समेटता हुआ सुन्दर गीत ...बधाई भावना जी
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार ..संध्या जी ..!!
हटाएंभोलापन खा गई तरक्की
जवाब देंहटाएंसीख गये हम कलाबाजियाँ...
विषय को नया आयाम देता नवगीत । हार्दिक बधाई 1
आदरणीय आपका आभार ..नवगीत की पाठशाला से विद्यार्थिनी बन सीखने का उपक्रम कर रहे हैं हम ..!!
हटाएंअपने अंतर में झाँकने को प्रेरित करता है यह गीत. शायद अभी भी कोई गाडी बची हो....शायद सवेरे वाली...
जवाब देंहटाएंआदरणीय आपका आभार..जीवन में सँभल जाने का पथ सदैव बाहें फैलाये खड़ा रहता है ..!!...और वही जागरण का सवेरा है .!!
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंबहुत सुंदर नवगीत है, भावना जी को बधाई
जवाब देंहटाएंआदरणीय आपका आभार.!!
हटाएंप्लेटफ़ॉर्म पर
जवाब देंहटाएंखड़े रह गए,
छूट गईं सब रेलगाड़ियाँ
भोलापन खा गई तरक्की
सीख गए हम कलाबाज़ियाँ
बजा सीटियाँ, समय ने जाने
खेल कौन-सा
खेला है?................. बहुत सुंदर ... भावना जी बधाई....
आपका बहुत-बहुत आभार ..
हटाएं...मन पंछी बहुत अकेला है.... ख़ुद को कहाँ ढकेला है....खेला कौन सा खेला है,
जवाब देंहटाएंबहुत ह़ी सुंदर नवगीत
भावना जी बधाई !!!
आपका बहुत आभार ..BRAJESH JI
हटाएंप्लेटफ़ॉर्म पर खड़े रह गए,छूट गईं सब रेलगाड़ियाँ
जवाब देंहटाएंभोलापन खा गई तरक्की, सीख गए हम कलाबाज़ियाँ
बजा सीटियाँ, समय ने जाने खेल कौन-सा खेला है?
वास्तव में समय का खेल निराला है, सुन्दर रचना के लिये भावना जी को बहुत बहुत बधाई धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
आपका बहुत-बहुत आभार ..
हटाएंचारों और रौशनी फिर
जवाब देंहटाएंफिर भी भीतर बहुत अँधेरा है.
मन की व्याकुलता और रीतेपन की सुन्दर कहन डाक्टर भावना जी द्वारा.
प्लेटफार्म पर खड़े रह गये..........क्या सुन्दर विम्ब है.
एक सुन्दर नवगीत.
समय की गाड़ी चली गई और हम तुच्छ चीज़ों की गठरी थामे खड़े रह गए |एक सच्चाई है यह जीवन की | सुन्दर सहज नवगीत | बधाई आपको
जवाब देंहटाएंधूल, धुआँ,
जवाब देंहटाएंधूप के साए
कंकरीट से रिश्ते पाए
हवा विरोधी, आपाधापी
छाया में भी, तन जल जाए
क्या पाना था? क्या पाया है ?
ख़ुद को कहाँ,
ढकेला है
नकारात्मक विकास का पुनरावलोकन करने के लिए प्रेरित करते एक सुन्दर नवगीत के लिए भावना जी को बहुत बहुत बधाई.
मन का पंछी बहुत अकेला है...बहुत सुंदर भाव पूर्ण नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई,भावना जी।
जवाब देंहटाएंहवा विरोधी, आपाधापी
जवाब देंहटाएंछाया में भी, तन जल जाए
क्या पाना था? क्या पाया है ?
ख़ुद को कहाँ,
ढकेला है ...बहुत सुन्दर. सुन्दर नवगीत के लिये बधाई भावना जी.