जब से मन की नाव चली, अँगना छूटा
घर गलियाँ भी
पनघट कहाँ,
कहाँ अठखेली, जमघट से बाजार पटे
बटवृक्षों की थाती इतनी, रिश्तों के भ्रमजाल हटे
जब से मन के बाँध बँधे मधुबन छूटा
रँगरलियाँ भी
झगड़े टंटे,
आपाधापी, जैसे पैरों फटी बिवाई
मकड़जाल में फँसी उमरिया, सुख पहुँचा, आँखें पथराई
जब से मन की पीर घटी कसबल छूटा
खलबलियाँ भी
चंदनवन दिन,
केसर रातें, मधुकोष भरी ॠतुएँ देखीं
घर का ना नेह घटा किंचित, बस उमर सदा घटते देखीं
जब से मन आकाश हुआ कथना छूटा,
कनबतियाँ भी
सतरंगी सपने
चाहत के, घर से दूर भगा लाये
सागर ने फैलाई बाहें, मुड़कर क़दम न जा पाये
जब से मन की आँख खुली कल युग छूटा,
अब सदियाँ भी
आकुल
कोटा
घर गलियाँ भी
पनघट कहाँ,
कहाँ अठखेली, जमघट से बाजार पटे
बटवृक्षों की थाती इतनी, रिश्तों के भ्रमजाल हटे
जब से मन के बाँध बँधे मधुबन छूटा
रँगरलियाँ भी
झगड़े टंटे,
आपाधापी, जैसे पैरों फटी बिवाई
मकड़जाल में फँसी उमरिया, सुख पहुँचा, आँखें पथराई
जब से मन की पीर घटी कसबल छूटा
खलबलियाँ भी
चंदनवन दिन,
केसर रातें, मधुकोष भरी ॠतुएँ देखीं
घर का ना नेह घटा किंचित, बस उमर सदा घटते देखीं
जब से मन आकाश हुआ कथना छूटा,
कनबतियाँ भी
सतरंगी सपने
चाहत के, घर से दूर भगा लाये
सागर ने फैलाई बाहें, मुड़कर क़दम न जा पाये
जब से मन की आँख खुली कल युग छूटा,
अब सदियाँ भी
आकुल
कोटा
प्रवाह मय शैली से मन को बांधता रसपूर्ण सुंदर नवगीत। आकुल जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसतरंगी सपने चाहत के घर से दूर भगा लाए
जवाब देंहटाएंसागर ने फैलाई बांहे
मुड़कर कदम न जा पाएं
जबसे मन की आँख खुली कलयुग छूटा
अब सदियां भी
बहुत सुन्दर भाव समेटे हुए नवगीतके लिए आकुल जी को बधाई ।
बहुत बहुत बधाई आकुल जी को इस सुंदर नवगीत के लिए
जवाब देंहटाएंअच्छे नवगीत के लिए आकुल जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंसतरंगी सपने चाहत केए घर से दूर भगा लाये
जवाब देंहटाएंसागर ने फैलाई बाहेंए मुड़कर क़दम न जा पाये
जब से मन की आँख खुली कल युग छूटाएअब सदियाँ भी
सुंदर रचना के लिये आकुल जी को बहुत बहुत बधाई,
विमल कुमार हेड़ा।
जबसे मन की आँख खुली कलयुग छूटा
जवाब देंहटाएंअब सदियां भी ....बहुत सुन्दर गीत ...सुन्दर अलग सा मुखडा ....और उसका अंत तक निर्वाह खूबसूरती से .....हार्दिक बधाई आकुल जी ...
नमस्कार
जवाब देंहटाएंसभी पाठक साहित्यकारों का आभार।
जब से मन की नाव चली, अँगना छूटा
जवाब देंहटाएंघर गलियाँ भी.
बहुत सार्थक कथन. पाने के बरक्स खोने का दर्दीला एहसास बड़ी संजीदगी से व्यक्त किया गया है. नवगीत की लय भी बहुत प्रवाही है. आकुल जी को बधाई एक सार्थक, सुन्दर नवगीत के लिए.
जब से मन की नाव चली, अँगना छूटा
जवाब देंहटाएंघर गलियाँ भी.
बहुत सार्थक कथन. पाने के बरक्स खोने का दर्दीला एहसास बड़ी संजीदगी से व्यक्त किया गया है. नवगीत की लय भी बहुत प्रवाही है. आकुल जी को बधाई एक सार्थक, सुन्दर नवगीत के लिए.
जब से मन की नाव चली, अँगना छूटा
जवाब देंहटाएंघर गलियाँ भी.
बहुत सार्थक कथन. पाने के बरक्स खोने का दर्दीला एहसास बड़ी संजीदगी से व्यक्त किया गया है. नवगीत की लय भी बहुत प्रवाही है. आकुल जी को बधाई एक सार्थक, सुन्दर नवगीत के लिए.