आसमान के पार स्वर्ग है
सोच चला घर से
जाकर देखा वहाँ अँधेरा दीपक को तरसे
पर्वत पर चढ़ने को माटी का आँचल छोड़ा
हरियाली ने धीरे धीरे मुझसे मुँह मोड़ा
थोड़ा और चढ़ा ऊपर तो
मिले बर्फ़ के दिल
आसमान छूने का लेकिन
नशा बड़ा कातिल
इससे ऊपर प्रेम-मेघ से भी हिम ही बरसे
जीवन का पौधा उगता हिमरेखा के नीचे
धार प्रेम की जहाँ नदी बन धरती को सींचे
आसमान से आम आदमी
लगता है चींटी
नभ केवल रंगीन भरम है
सच्चाई मिट्टी
गिर जाता जो अंबर से वो मरता है डर से
अंबर तक यदि जाना है तो चिड़िया बन जाओ
दिन भर नभ की सैर करो पर संध्या घर आओ
आसमान पर कहाँ बसा है
कभी किसी का घर
ज्यादा जोर लगाया जिसने
टूटे उसके पर
फैलो, काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से
-धर्मेन्द्र सिंह सज्जन
बिलासपुर
सोच चला घर से
जाकर देखा वहाँ अँधेरा दीपक को तरसे
पर्वत पर चढ़ने को माटी का आँचल छोड़ा
हरियाली ने धीरे धीरे मुझसे मुँह मोड़ा
थोड़ा और चढ़ा ऊपर तो
मिले बर्फ़ के दिल
आसमान छूने का लेकिन
नशा बड़ा कातिल
इससे ऊपर प्रेम-मेघ से भी हिम ही बरसे
जीवन का पौधा उगता हिमरेखा के नीचे
धार प्रेम की जहाँ नदी बन धरती को सींचे
आसमान से आम आदमी
लगता है चींटी
नभ केवल रंगीन भरम है
सच्चाई मिट्टी
गिर जाता जो अंबर से वो मरता है डर से
अंबर तक यदि जाना है तो चिड़िया बन जाओ
दिन भर नभ की सैर करो पर संध्या घर आओ
आसमान पर कहाँ बसा है
कभी किसी का घर
ज्यादा जोर लगाया जिसने
टूटे उसके पर
फैलो, काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से
-धर्मेन्द्र सिंह सज्जन
बिलासपुर
बहुत सुंदर. धर्मेन्द्र जी को बधाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शारदा जी
हटाएंबहुत अच्छा लगा आपका नवगीत धर्मेन्द्र जी. आपके नवगीत हमेशा नवीनता लिए होते है, यहाँ भी आपने एक नया दृष्टिकोण रखा है जो वैज्ञानिक भी है और व्यावहारिक भी. आपको बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया परमेश्वर जी
हटाएंज्यादा जोर लगाया जिसने
जवाब देंहटाएंटूटे उसके पर
फैलो, काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से
बहुत सुन्दर गीत है ...सार्थक सन्देश के साथ ...बधाई धर्मेन्द्र जी को
बहुत बहुत शुक्रिया संध्या जी
हटाएंविचारों की गहनता में पिरोए हुए सुन्दर नवगीत के लिए धर्मेन्द्र जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद उत्तम जी
हटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंगलवार को चर्चाकारा राजेश कुमारी के द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया राजेश कुमारी जी
हटाएंअंबर तक यदि जाना है तो चिड़िया बन जाओ
जवाब देंहटाएंदिन भर नभ की सैर करो पर संध्या घर आओ...
जमीन से जुड़े रहने का संदेश देते नवगीत के लिए
धर्मेन्द्र सिंह जी को बहुत बहुत बधाई ।
अंबर तक यदि जाना है तो चिड़िया बन जाओ
जवाब देंहटाएंदिन भर नभ की सैर करो पर संध्या घर आओ...
जमीन से जुड़े रहने का संदेश देते नवगीत के लिए
धर्मेन्द्र सिंह जी को बहुत बहुत बधाई ।
शुक्रिया सुरेंद्रपाल जी
हटाएंसुन्दर नवगीत.....बधाई धर्मेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंडॉ सरस्वती माथुर
......
शुक्रिया सरस्वती जी
हटाएंअंबर तक यदि जाना है तो चिड़िया बन जाओ
जवाब देंहटाएंदिन भर नभ की सैर करो पर संध्या घर आओ
आसमान पर कहाँ बसा है
कभी किसी का घर
ज्यादा जोर लगाया जिसने
टूटे उसके पर
फैलो, काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से
.. आज के युवा के लियें एक बड़ी सीख .. बहुत सुंदर .. बधाई धर्मेन्द्र जी...
बहुत बहुत शुक्रिया गीता जी
हटाएंसुंदर नवगीत
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कल्पना जी
हटाएंनवगीत की आम कहन से अलग होते हुए भी धर्मेन्द्र जी का यह गीत, सच में, अद्भुत बन पड़ा है| इसका मुखड़ा और पहला पद तो अनूठा ही है| धर्मेन्द्र जी को इस श्रेष्ठ गीत के लिए मेरी हार्दिक बधाई|
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद रवींद्र जी, आप के समीक्षात्मक टिप्पण भविष्य के लिए मार्गदर्शक का कार्य करते हैं
हटाएंआसमान पर कहाँ बसा है,कभी किसी का घर
जवाब देंहटाएंज्यादा जोर लगाया जिसने, टूटे उसके पर
एक अच्छा संदेश देती यह रचना, धर्मेन्द्र जी को बहुत बहुत बधाई।
विमल कुमार हेड़ा
बहुत बहुत धन्यवाद विमल जी
हटाएंआसमान पर कहाँ बसा है
जवाब देंहटाएंकभी किसी का घर
ज्यादा जोर लगाया जिसने
टूटे उसके पर
फैलो, काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से
बहुत ही सुन्दर. अंतिम पंक्ति तो बहुत कुछ बताती है.
बहुत बहुत धन्यवाद अनिल जी
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंविषय को व्यापक परिद्रश्य प्रदान करता आपका सुन्दर नवगीत धर्मेन्द्र जी.
जवाब देंहटाएंअंबर तक यदि जाना है तो चिड़िया बन जाओ
दिन भर नभ की सैर करो पर संध्या घर आओ
आसमान पर कहाँ बसा है
कभी किसी का घर
ज्यादा जोर लगाया जिसने
टूटे उसके पर
फैलो, काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से.
सार्थक संदेश.
बहुत बहुत धन्यवाद
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