उड़ रहे हैं दूर तक,
पर खो गईं उनकी ज़मीने
नींद लिपटे
बादलों की करवटों से
झाँकता तो है वो सूरज सलवटों से
पर नज़र से भोलापन
छीना किसी ने
उड़ रहे हैं दूर तक,
पर खो गईं उनकी ज़मीने
घुल गए हैं
श्वास में बाज़ार अब
आँखें भी सच देख कर बेज़ार अब
बिक रहे जज़्बात जो
बेचे हमी ने
उड़ रहे हैं दूर तक,
पर खो गईं उनकी ज़मीने
-सुवर्णा
छिंदवाड़ा
बिक रहे जज़्बात जो
जवाब देंहटाएंबेचे हमी ने
उड़ रहे हैं दूर तक,
पर खो गईं उनकी ज़मीने
gahan hridaysparshi abhivyakti ...
bahut sundar ..
shubhkamnayen ...!!
उड़ रहे हैँ दूर तक
जवाब देंहटाएंपर खो गई उनकी जमीने ।
सुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक बधाई सुवर्णा जी ।
जी बहुत शुक्रिया
हटाएंइस सुन्दर नवगीत के लिए सुवर्णा जी को बधाई. विशेषकर
जवाब देंहटाएं"बिक रहे जज़्बात जो
बेचे हमी ने" पंक्तियाँ तो अद्भुत हैं और हमें याद दिलाती हैं कि हम कोई कम जिम्मेदार नहीं इस आबोहवा के.
बिक रहे जज़्बात जो बेचे हमी ने... सुंदर पंक्तियाँ सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंइस सुंदर नवगीत के लिए सुवर्णा जी को बधाई
जवाब देंहटाएंघुल गए हैं
जवाब देंहटाएंश्वास मेँ बाजार अब
आँखें भी सच देखकर बेजार अब
बिक रहे जज्बात जो
बेचे हमीँ ने
सच है इस बाजारवाद के युग मेँ सब कुछ बिक रहा है ।
इसका सटीक वर्णन करते नवगीत के लिए सुवर्णा जी को बधाई ।
गीत अच्छा है - कुछ उक्तियाँ यथा 'झाँकता...है वो सूरज सलवटों से', 'श्वास में बाज़ार','आँखें भी सच देख कर बेज़ार','बिक रहे जज़्बात जो
जवाब देंहटाएंबेचे हमी ने'आदि आम गीत की कहन से अलग उर्दू नज़्म की बानगी देती हैं| वही इसको विशिष्ट बनाती हैं| मेरा अभिनन्दन सुवर्णा जी को इस गीत के लिए|
धन्यवाद , आप सभी प्रबुद्धजनो की राय बहुत कीमती है मेरे लिए. ह्रदय से आभार आपका.
हटाएंघुल गए हैं
जवाब देंहटाएंश्वास में बाज़ार अब
आँखें भी सच देख कर बेज़ार अब
बिक रहे जज़्बात जो
बेचे हमी ने
उड़ रहे हैं दूर तक,
पर खो गईं उनकी ज़मीने
- सुंदर पंक्तियाँ, एक अच्छा नवगीत, सुवर्णा जी को बधाई।
बहुत सुन्दर मुखड़ा है ! मुझे भी कभी कभी पक्षी बन खुले आसमान में घूमने का मन करता है ! मैंने संभवतः इन पंक्तियों का शाब्दिक अर्थ ही लिया है परन्तु यह विचार कर जब देखती हूँ कि खुला आसमान तो हो और पर भी हों मगर नहीं हो तो केवल वह वृक्ष जहाँ रुक कर जिवंत होने की अनुभूति कर सकूँ तो कितना भयावह प्रतीत होगा यह संसार.... शून्य सा ! सुन्दर रचना के लिए बधाई !!
जवाब देंहटाएंkhoob
जवाब देंहटाएंजी आप सभी प्रबुद्ध जनो का शुक्रिया. जी रवीन्द्र जी सहमत हूँ आपसे, कुछ उर्दू शब्द ज़्यादा आ जाते हैं मेरी रचनाओं मे. धन्यवाद आप सभी का
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जवाब देंहटाएंनींद लिपटे
बादलों की करवटों से
झाँकता तो है वो सूरज सलवटों से
पर नज़र से भोलापन
छीना किसी ने
बहुत ही सुन्दर प्रकृति चित्रण. सुन्दर अनुभूति. पुष्ट नवगीत के लिये बधाई.
बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
नींद लिपटे
हटाएंबादलों की करवटों से
झाँकता तो है वो सूरज सलवटों से
पर नज़र से भोलापन
छीना किसी ने!...
बहुत खूब
बहुत खूब!
हटाएंनींद लिपटे
जवाब देंहटाएंबादलों की करवटों से
झाँकता तो है वो सूरज सलवटों से
पर नज़र से भोलापन
छीना किसी ने
उड़ रहे हैं दूर तक,
पर खो गईं उनकी ज़मीने
बहुत सुन्दर
बहुत धन्यवाद अनिल जी, शारदा जी और वन्दना जी. सभी का जिन्होने उत्साह वर्धन किया पुन: धन्यवाद.
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जवाब देंहटाएंज़मीन से कटे पंछियों की आज के जीवन की साद्रश्यता बहुत सार्थक मुखड़ा.
उड़ रहे हैं दूर तक,
पर खो गईं उनकी ज़मीने
सुन्दर अभिव्यक्ति.
नींद लिपटे
बादलों की करवटों से
झाँकता तो है वो सूरज सलवटों से
पर नज़र से भोलापन
छीना किसी ने.
जी शुक्रिया
हटाएंHole se chhukar karib se nikalte jajbaato ki anubhuti jab abhivyakt ho ...........
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