दौडती जा रही भागती जा रही
जिंदगी हाथ से छूटती जा रही
छूट गए खेत गाँव
टिके नहीं कहीं पाँव
ढूँढते ही रह गए
तोष में विलीन छाँव
हठी-नटी तृषा मृगी
कितना नचा रही
अनबुझी प्यास के
हाट का उधार है
सूद रोज बढ़ रहा
आर है न पार है
चैन की हवाओं को
भूलती जा रही
समय नहीं पोंछ ले
रुक के कोई आँख नम
हाथ थाम चल पड़े
रुक रहे जो साँस-दम
बाँट ले संवेदना जो,
हाथ छोड़ जा रही
ठहर जरा देख ले
चाँद डूबते हुए
और आसमान पर
सूर्य जूझते हुए
झील की तरंग में
चाँदनी नहा रही
तू क्यों ना देख पा रही ?
-शशि पाधा
यू.एस.ए
बहुत सुंदर नवगीत है शशि पाधा जी का, उन्हें बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद धर्मेन्द्र जी |
हटाएंसुंदर ...सकारात्मक भाव ॥बहुत अच्छी रचना ....!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ...
अनुपमा जी, आपको यह नवगीत अच्छा लगा | धन्यवाद
हटाएंअनबुझी प्यास के
जवाब देंहटाएंहाट का उधार है
सूद रोज बढ़ रहा
आर है न पार है
चैन की हवाओं को
भूलती जा रही सुन्दर सार्थक पंक्तियाँ, बधाई शशि जी सुन्दर नवगीत के लिए
सुवर्णा जी , जीवन की भागदौड में कोई कर्म तो सार्थक हो , यही सोच कर लिखा था | आपको धन्यवाद |
हटाएं...झील की तरंग में
जवाब देंहटाएंचाँदनी नहा रही...
नवगीत बहुत सुंदर.
शुभकामनायें.
शारदा जी, धन्यवाद | आपको प्रकृति से विशेष लागाव है | मैं यह जानती हूँ |
हटाएंछूट गए खेत गाँव, टिके नहीं कहीं पाँव,
जवाब देंहटाएंढूँढते ही रह गए, तोष में विलीन छाँव,
बहुत सुन्दर भाव लिये एक अच्छी रचना के लिये शशि पाधा जी को बहुत बहुत बधाई
विमल कुमार हेड़ा।
विमल कुमार जी,
हटाएंहार्दिक धन्यवाद |
समय नहीं पोंछ ले
जवाब देंहटाएंरुक के कोई आँख नम
हाथ थाम चल पड़े
रुक रहे जो साँस-दम
बाँट ले संवेदना जो,
हाथ छोड़ जा रही
..............बहुत सुंदर नवगीत .
बहुत बधाई शशि दी
गीता जी, आपको मेरी रचना भायी | धन्यवाद |
हटाएं"अनबुझी प्यास के
जवाब देंहटाएंहाट का उधार है
सूद रोज बढ़ रहा
आर है न पार है" बहुत सुन्दर चित्रण है जीवन की भागमभाग का. सुन्दर नवगीत. आ शशी पाधा जी को बहुत बहुत बधाई.
मुख्य भाव की पंक्तियाँ रेखांकित करने के लिए धन्यवाद आपका |
हटाएंसमय नहीं पोंछ ले
जवाब देंहटाएंरुक के कोई आँख नम
हाथ थाम चल पड़े
रुक रहे जो साँस-दम
बाँट ले संवेदना जो,
हाथ छोड़ जा रही
बहुत सुंदर भाव पूर्ण नवगीत। बधाई शशि जी
विडंबना का क्या सुन्दर चित्रण है.
जवाब देंहटाएंदौडती जा रही भागती जा रही
जिंदगी हाथ से छूटती जा रही.
खोने की कसक और बढती त्रश्न्गी का जवाब नही.
खुशनुमा पलों को संजोने की अभिलाषा:
ठहर जरा देख ले
चाँद डूबते हुए
और आसमान पर
सूर्य जूझते हुए
झील की तरंग में
चाँदनी नहा रही
तू क्यों ना देख पा रही ?
एक बढ़िया नवगीत आ० शशि पाधा जी,.बधाई.
कमाल की रवानी है इस नवगीत में. सुन्दर शब्द संयोजन एवं भावाभिव्यक्ति. रससिक्त करती रचना के लिये बधाई शशि पाधा जी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनिल जी
हटाएंबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण नवगीत के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुरेंदर पाल जी |
हटाएंबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण नवगीत के लिए बधाई ।
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