चलो, प्रीत के
दीप जलाएँ
हम उजियालों के प्रहरी हैं,
अंधियारों से कैसा नाता?
चलो, प्रकाश के दीप जलाएँ!
आशाओं के
स्वप्न संजो कर, हम तो बढ़ते हैं नित आगे!
चरणों की गति देख हमारी, बाधा हम से डर कर भागे!!
साहस का वरदान लिए हम,अभिशापों से कैसा नाता?
नित आशा के दीप जलाएँ!
देह हमारा प्रेय
बनी कब? आत्म-तत्व के रहे पुजारी!
व्यष्टि छोड़,समष्टि को चाहा, परमार्थ बना साधना हमारी!!
युग - निर्माण हमारी मंजिल, विध्वंसों से कैसा नाता?
नए सृजन के दीप जलाएँ!
विश्व बने परिवार
हमारा, यही हमारा लक्ष्य रहा है!
युग की खातिर जिए सदा हम, औरों की खातिर दुःख सहा है!!
यह वसुधा परिवार हमारा, फिर किससे नफरत का नाता?
चलो, प्रीत के दीप जलाएँ!
--डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा "अरुण"
सुंदर गीत ..
जवाब देंहटाएंयह वसुधा परिवार हमारा,
जवाब देंहटाएंफिर किससे नफरत का नाता ?
चलो प्रीत के दीप जलाएँ ।
सुन्दर नवगीत के लिए डा. योगेन्द्र नाथ जी बधाई ।
विश्व बने परिवार
जवाब देंहटाएंहमारा, यही हमारा लक्ष्य रहा है!
युग की खातिर जिए सदा हम, औरों की खातिर दुःख सहा है!!
यह वसुधा परिवार हमारा, फिर किससे नफरत का नाता?
चलो, प्रीत के दीप जलाएँ!
आपकी ये पोस्ट पढ़ कर दिल बाग - बाग हो गया। ....बधाई स्वीकार करें
आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।
अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।
धन्यवाद !!
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html
सुंदर गीत के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंएक आशावादी रचना ..सुंदर
जवाब देंहटाएंविश्व बने परिवार
जवाब देंहटाएंहमारा, यही हमारा लक्ष्य रहा है!
बहुत सुन्दर
देह हमारा प्रेय
जवाब देंहटाएंबनी कब? आत्म-तत्व के रहे पुजारी!
व्यष्टि छोड़,समष्टि को चाहा, परमार्थ बना साधना हमारी!!
युग - निर्माण हमारी मंजिल, विध्वंसों से कैसा नाता?
नए सृजन के दीप जलाएँ!
उद्बोधनपूर्ण पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाई।
बहुत सुन्दर. हार्दिक बधाई।
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