दीप-अवलियों से
यह अग-जग,
ज्योतिर्मय कर दो।
मटमैली संझा
अम्बर का धूसर रंग हुआ,
सूरज बुझा, कालिमा पसरी,
आंगन धुआँ-धुआँ।
जगे आज
आलोक सृष्टि में
स्वस्ति राशि भर दो
कहीं तिमिर अब
और न कर ले बघनख ही पैने,
सुआ-दिवस के
टूट न जाएँ सपनीले डैने,
ज्योतिपुंज से
दिग-दिगन्त को
जीवन से भर दो।
दुर्गा, वीणापाणि, लक्ष्मी
और महाकाली,
दिव्यान्तरण, ज्योति का क्षण
यह जगमग दीवाली,
आज अमा के शीष
ज्योति का
राजमुकुट धर दो।।
दिवाकर वर्मा
यह अग-जग,
ज्योतिर्मय कर दो।
मटमैली संझा
अम्बर का धूसर रंग हुआ,
सूरज बुझा, कालिमा पसरी,
आंगन धुआँ-धुआँ।
जगे आज
आलोक सृष्टि में
स्वस्ति राशि भर दो
कहीं तिमिर अब
और न कर ले बघनख ही पैने,
सुआ-दिवस के
टूट न जाएँ सपनीले डैने,
ज्योतिपुंज से
दिग-दिगन्त को
जीवन से भर दो।
दुर्गा, वीणापाणि, लक्ष्मी
और महाकाली,
दिव्यान्तरण, ज्योति का क्षण
यह जगमग दीवाली,
आज अमा के शीष
ज्योति का
राजमुकुट धर दो।।
दिवाकर वर्मा
वाह..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
भाई दिवाकर वर्मा का यह गीत, सच में, दीपपर्व-पूजन के स्वस्ति-वाचन जैसा बन पड़ा है| इसके लिए उनका एवं 'नवगीत पाठशाला' को मेरा हार्दिक साधुवाद|
जवाब देंहटाएंआज अमा के शीष
जवाब देंहटाएंज्योति का
राजमुकुट धर दो
सुन्दर रचना दिवाकर जी। बधाई
बहुत सुंदर नवगीत है दिवाकर जी का, उन्हें बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत, और एक जिम्मेदार नागरिक की चिन्ता, वधाई-
जवाब देंहटाएं"कहीं तिमिर अब
और न कर ले बघनख ही पैने"
जगे आज
जवाब देंहटाएंआलोक सृष्टि में
स्वस्ति राशि भर दो....सुन्दर रचना दिवाकर जी। बधाई