हल्दी भरे हाथ की थापें मार कर
जाने क्या लिख गई अमावस
लिपी-पुती दीवार पर
तोड़ गई मज़दूरिन मकड़ी का
झीना छींका
आले में रख गई सुनहरी
झुमका चमकीला
गेंदे की मेहराब सजा कर द्वार पर
जाने क्या लिख गई अमावस
लिपी-पुती दीवार पर
आँगन में
कालीन केसरी बिछा गई पगली
चौकी पर
दो-तीन मूर्तियाँ रख कर भली-भली
एकदन्त पर खिल-बताशे वार कर
जाने क्या लिख गई अमावस
लिपी-पुती दीवार पर
--रमेश रंजक
जाने क्या लिख गई अमावस
लिपी-पुती दीवार पर
तोड़ गई मज़दूरिन मकड़ी का
झीना छींका
आले में रख गई सुनहरी
झुमका चमकीला
गेंदे की मेहराब सजा कर द्वार पर
जाने क्या लिख गई अमावस
लिपी-पुती दीवार पर
आँगन में
कालीन केसरी बिछा गई पगली
चौकी पर
दो-तीन मूर्तियाँ रख कर भली-भली
एकदन्त पर खिल-बताशे वार कर
जाने क्या लिख गई अमावस
लिपी-पुती दीवार पर
--रमेश रंजक
कुछ अच्छा ही लिख जाती है ये अमावस ..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं ..
बहुत सुंदर नवगीत है ये रमेश जी का, उन्हें बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंजाने क्या लिख गई अमावस
जवाब देंहटाएंलिपी पुती दिवार पर
सुन्दर नवगीत के लिए रमेश जी को बधाई ।
आँगन में
जवाब देंहटाएंकालीन केसरी बिछा गई पगली
चौकी पर
दो-तीन मूर्तियाँ रख कर भली-भली
एकदन्त पर खील-बताशे वार कर
जाने क्या लिख गई अमावस
लिपी-पुती दीवार पर
इन पंक्तियों में पर्व की सुखानुभूति है एक ओर तो दूसरी ओर जो घनीभूत अमावस है हमारे आज के समय में, उसकी ओर भी इंगित है| साधुवाद 'नवगीत पाठशाला' को इस रचना के माध्यम से श्रद्धेय भाई रमेश रंजक को इस पावन पर्व पर स्मरण करने के लिए|
नवगीत बहुत अच्छा बन पडा है। हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत के लिये रमेश रंजक जी को वधाई
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