4 नवंबर 2012

१६. उजियारे की बात

देहरी – देहरी
चल निकली फिर उजियारे की बात
आओ मिलकर करें सुनिश्चित
अँधियारे की मात

गौशाले दालान धुल गये,
पनघट डगर मकान धुल गये
चूल्हा–चौका ताखें दीवट
घर के सब सामान धुल गये
और धुल गये मंदिर–मंदिर
ठाकुर जी के गात

द्वार – द्वार पर दीप–वियोगी
हठ पर हैं जैसे हठयोगी
जागे अब उजास के शावक
तमस–सुतों की खैर न होगी
जुटी अमावस के घर अनशन पर
दीपों की पाँत

दीप जलें निमिया के ठौरे
आँगन में तुलसी के चौरे
जगमग मंदिर की चौखट पर
घूरों के भी दिन हैं बहुरे
धरती पर आ ठहरी नभ के
तारों की बारात

खील–खिलौने और मिठाई
अम्मा ने देवखरी सजाई
पूजन है लक्ष्मी–गणेश का
सबने मिलकर आरति गाई

यही कामना सबके घर सुख
लेकर आये प्रात

– कृष्ण नन्दन मौर्य

11 टिप्‍पणियां:

  1. दीप जलें निमिया के ठौरे
    आँगन में तुलसी के चौरे
    जगमग मंदिर की चौखट पर
    घूरों के भी दिन हैं बहुरे

    बहुत प्यारा नवगीत। बधाई नन्दन जी

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  2. कृष्ण नन्दन जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं। बहुत सुंदर नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई।

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