विदा होकर जाते-जाते,
बरस बीता कह गया।
नवल तुम वो पूर्ण करना,
जो नहीं मुझसे हुआ।
गगन बेशक छुआ लेकिन,
देश अनदेखा किया।
लोग रोटी मांगते थे,
चाँद लाकर दे दिया।
बूंद रक्षण कर न पाया,
अमिय घट, घटता गया,
होश आया, जब समय ने,
हाथ पकड़ा, चल, कहा।
अब तुम्हीं आज़ाद करना,
देश को जंजाल से।
मुक्त हर दीवार रखना,
मकड़ियों के जाल से।
जड़ों को जकड़े न दीमक,
रूप निज विकराल से,
आस का नव सूर्य तुम हो,
मैं हुआ बुझता दिया।
बदल देना नियम सारे,
खत्म सब मतभेद हों।
दफन केवल फाइलों में,
वायदे ना कैद हों।
मान्य होंगे दस्तखत,तेरे
तुम्हीं अब वैध हो,
तुम नई तारीख, मैं
जूना कैलेंडर अब हुआ।
जश्न तो होते रहेंगे,
युग बदलते जाएंगे।
नव सजेंगे सुर्खियों में,
पुरातन खो जाएंगे।
सब सुनेंगे मित्र, तुमको,
सब तुम्हें ही गाएँगे,
आज तुम नवगीत हो,मैं
गीत गुज़रा रह गया।
-कल्पना रामानी
बरस बीता कह गया।
नवल तुम वो पूर्ण करना,
जो नहीं मुझसे हुआ।
गगन बेशक छुआ लेकिन,
देश अनदेखा किया।
लोग रोटी मांगते थे,
चाँद लाकर दे दिया।
बूंद रक्षण कर न पाया,
अमिय घट, घटता गया,
होश आया, जब समय ने,
हाथ पकड़ा, चल, कहा।
अब तुम्हीं आज़ाद करना,
देश को जंजाल से।
मुक्त हर दीवार रखना,
मकड़ियों के जाल से।
जड़ों को जकड़े न दीमक,
रूप निज विकराल से,
आस का नव सूर्य तुम हो,
मैं हुआ बुझता दिया।
बदल देना नियम सारे,
खत्म सब मतभेद हों।
दफन केवल फाइलों में,
वायदे ना कैद हों।
मान्य होंगे दस्तखत,तेरे
तुम्हीं अब वैध हो,
तुम नई तारीख, मैं
जूना कैलेंडर अब हुआ।
जश्न तो होते रहेंगे,
युग बदलते जाएंगे।
नव सजेंगे सुर्खियों में,
पुरातन खो जाएंगे।
सब सुनेंगे मित्र, तुमको,
सब तुम्हें ही गाएँगे,
आज तुम नवगीत हो,मैं
गीत गुज़रा रह गया।
-कल्पना रामानी
अब तुम्हीं आज़ाद करना,
जवाब देंहटाएंदेश को जंजाल से।
मुक्त हर दीवार रखना,
मकड़ियों के जाल से।
जड़ों को जकड़े न दीमक,
रूप निज विकराल से,
आस का नव सूर्य तुम हो,
मैं हुआ बुझता दिया।
बढ़िया नवगीत
बरस बीता कह गया ,, अच्छा गीत लिखा कल्पना जी आपने.
जवाब देंहटाएंआज तुम नवगीत हो,मैं
गीत गुज़रा रह गया। ..... अच्छी पंक्तियाँ
वाह वाह बहुत सुन्दर ......सभी बंद अनोखे और सार्थक सन्देश के साथ
जवाब देंहटाएंलोग रोटी मांगते थे,
चाँद लाकर दे दिया।
बूंद रक्षण कर न पाया,
अमिय घट, घटता गया,...इस सुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक बधाई कल्पना जी
सुंदर नवगीत के लिए कल्पना जी को बधाई
जवाब देंहटाएंबदल देना नियम सारे,
जवाब देंहटाएंखत्म सब मतभेद हो ।
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएँ ।
बहुत ही सुन्दर रचना हार्दिक बधाई कल्पना जी. प्रत्येक पंक्ति लाजवाब.
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत कल्पना जी। बधाई
जवाब देंहटाएंअब तुम्हीं आज़ाद करना,
जवाब देंहटाएंदेश को जंजाल से।
मुक्त हर दीवार रखना,
मकड़ियों के जाल से।
जड़ों को जकड़े न दीमक,
रूप निज विकराल से,
आस का नव सूर्य तुम हो,
मैं हुआ बुझता दिया।
आमीन! काश यह मनोकामना पूर्ण हो सके.
गगन बेशक छुआ लेकिन,
जवाब देंहटाएंदेश अनदेखा किया।
लोग रोटी मांगते थे,
चाँद लाकर दे दिया
सुन्दर नवगीत कल्पना जी