नए वर्ष में
नया नहीं कुछ
सभी पुराना है
मंहगा हुआ और भी आटा
दाल और उछली
मंहगाई से लड़े मगर
कब अपनी दाल गली
सूदखोर का
हर दिन घर पर
आना जाना है
सोचा था, इस बढ़ी दिहाड़ी से
कुछ पाएँगे
थैले में कुछ खुशियाँ भरकर
घर में लाएँगे
काम नहीं मिलने का
हर दिन
नया बहाना है
फिर भी उम्मीदों का दामन
कभी न छोड़ेंगे,
बड़े यतन से
सुख का टुकड़ा टुकड़ा जोड़ेंगे,
आखिर
अपने पास
यही अनमोल खजाना है.
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
नया नहीं कुछ
सभी पुराना है
मंहगा हुआ और भी आटा
दाल और उछली
मंहगाई से लड़े मगर
कब अपनी दाल गली
सूदखोर का
हर दिन घर पर
आना जाना है
सोचा था, इस बढ़ी दिहाड़ी से
कुछ पाएँगे
थैले में कुछ खुशियाँ भरकर
घर में लाएँगे
काम नहीं मिलने का
हर दिन
नया बहाना है
फिर भी उम्मीदों का दामन
कभी न छोड़ेंगे,
बड़े यतन से
सुख का टुकड़ा टुकड़ा जोड़ेंगे,
आखिर
अपने पास
यही अनमोल खजाना है.
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आज के जीवन की आम समस्याओं से हमें रू-ब-रू कराती त्रिलोक जी की यह रचना एक मुकम्मिल नवगीत है - उन्हें मेरा हार्दिक साधुवाद|
जवाब देंहटाएंफिर भी उम्मीदों का दामन
जवाब देंहटाएंकभी न छोड़ेंगे,
बड़े यतन से
सुख का टुकड़ा टुकड़ा जोड़ेंगे,
आखिर
अपने पास
यही अनमोल खजाना है।
बहुत सुंदर और सकारात्मक भाव... हार्दिक बधाई
फिर भी उम्मीदों का दामन
जवाब देंहटाएंकभी न छोड़ेंगे,
बड़े यतन से
सुख का टुकड़ा टुकड़ा जोड़ेंगे,
आखिर
अपने पास
यही अनमोल खजाना है....बहुत खूब. सुन्दर एवं सार्थक नवगीत के लिये हार्दिक बधाई.
बहुत सुंदर नवगीत है ठकुरेला जी का। रवींद्र जी ने कम शब्दों में सब कुछ कह दिया है। बहुत बहुत बधाई ठकुरेला जी को।
जवाब देंहटाएंफिर भी उम्मीदों का दामन
जवाब देंहटाएंकभी न छोड़ेंगे,
बड़े यतन से
सुख का टुकड़ा टुकड़ा जोड़ेंगे,
आखिर
अपने पास
यही अनमोल खजाना है सुन्दर नवगीत त्रिलोक जी
सोचा था, इस बढ़ी दिहाड़ी से
जवाब देंहटाएंकुछ पाएँगे
थैले में कुछ खुशियाँ भरकर
घर में लाएँगे...बहुत प्यारा नवगीत
आज की समस्याओँ का यथार्थ प्रस्तुत करता नवगीत ।
जवाब देंहटाएंठकुरेला जी को हार्दिक बधाई ।
फिर भी उम्मीदों का दामन
जवाब देंहटाएंकभी न छोड़ेंगे,
बड़े यतन से
सुख का टुकड़ा टुकड़ा जोड़ेंगे,
आखिर
अपने पास
यही अनमोल खजाना है.
यह खज़ाना दिन-बी-दिन बढ़ता रहे, यही कामना है.
मंहगा हुआ और भी आटा
जवाब देंहटाएंदाल और उछली
मंहगाई से लड़े मगर
कब अपनी दाल गली
..सुन्दर नवगीत त्रिलोक जी.