विगत यादों की
सुनहरी सीढ़ियाँ चढ़ते हुये
मज़ा आता है
पुरानी डायरी पढ़ते हुये
फिर किसी की
चूड़ियों से दिन खनकने हैं लगे
तोतले संवाद
आँगन घूमने फिरने लगे
जी जुड़ाया बहुत
गुज़रे दौर से जुड़ते हुये
चिल्ल–पों, ऊधम
शरारत, खिलखिलाहट, तालियाँ
नाचती हैं फिर
नयन में होलियाँ, दीवालियाँ
दिख रही हैं कढ़ाई
में पूड़ियाँ कढ़ते हुये
टीसते हैं घाव
टहनी दर्द की अब भी हरी है
टूटता है भ्रम कि
जीवन हँसी–ठट्टा मसखरी है
पाँव के छालों
तुम्हारी आरती गढ़ते हुये
– रवि शंकर मिश्र "रवि"
सुनहरी सीढ़ियाँ चढ़ते हुये
मज़ा आता है
पुरानी डायरी पढ़ते हुये
फिर किसी की
चूड़ियों से दिन खनकने हैं लगे
तोतले संवाद
आँगन घूमने फिरने लगे
जी जुड़ाया बहुत
गुज़रे दौर से जुड़ते हुये
चिल्ल–पों, ऊधम
शरारत, खिलखिलाहट, तालियाँ
नाचती हैं फिर
नयन में होलियाँ, दीवालियाँ
दिख रही हैं कढ़ाई
में पूड़ियाँ कढ़ते हुये
टीसते हैं घाव
टहनी दर्द की अब भी हरी है
टूटता है भ्रम कि
जीवन हँसी–ठट्टा मसखरी है
पाँव के छालों
तुम्हारी आरती गढ़ते हुये
– रवि शंकर मिश्र "रवि"
बहुत सुन्दर गीत रवि जी ........विशेष कर इन पंक्तियों के लिए विशेष बधाई
जवाब देंहटाएंमज़ा आता है
पुरानी डायरी पढ़ते हुये
तोतले संवाद
आँगन घूमने फिरने लगे
जी जुड़ाया बहुत
गुज़रे दौर से जुड़ते हुये
बहुत बहुत बधाई ............
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंभावपूर्ण गीत..... भाई रबिशंकर जी...! ब्धाई
जवाब देंहटाएंकिन्तु वर्तनी भ्रम है अथवा आपका मन्तव्य कुछ ऒर.. . मुझे लगा आप.. .
कड़ाही में पूड़ियाँ तलते हुये कहना चाहते हैं । कृपया स्पष्ट करें।
सप्रेम
श्रीकान्त जी, अवधी में तलने के स्थान पर काढ़ने शब्द का प्रयोग धड़ल्ले से होता है। अतः सुविधा के लिये कढ़ते शब्द का इस्तेमाल कर लिया है, और कोई बात नहीं
हटाएंगीत का मुखड़ा बहुत ही सुंदर है। अनोखी कल्पना से सजे सुंदर नवगीत के लिए रविशंकर जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार कल्पना जी
हटाएंजी जुड़ाया बहुत
जवाब देंहटाएंगुज़रे दौर से जुड़ते हुये
.............
टीसते हैं घाव
टहनी दर्द की अब भी हरी है
टूटता है भ्रम कि
जीवन हँसी–ठट्टा मसखरी है
पाँव के छालों
तुम्हारी आरती गढ़ते हुये........ सुन्दर गीत मिश्र जी, बधाई आपको
बहुत बहुत धन्यवाद सुवर्णा जी
हटाएंभाई रविशंकर का यह गीत बहुत अच्छा बन पड़ा है - इसके बिम्ब एकदम सीधे जीवन के आम अनुभवों से उपजे हैं। नवगीत की यह भंगिमा ही उसे आज की प्रतिनिधि कविता बनाती है। मेरा हार्दिक साधुवाद 'रवि' जी को!
जवाब देंहटाएंआपका आशीर्वाद मेरे लिये बहुत ही उत्साहवर्धक है। बहुत बहुत आभार
हटाएंसुन्दर नवगीत के लिए रविशंकर जी को हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंअनेकशः धन्यवाद सुरेन्द्रपाल जी
हटाएंटीसते हैं घाव
जवाब देंहटाएंटहनी दर्द की अब भी हरी है
टूटता है भ्रम कि
जीवन हँसी–ठट्टा मसखरी है
पाँव के छालों
तुम्हारी आरती गढ़ते हुये
रवि जी! इस अनुष्ठान की अब तक की श्रेष्ठ प्रस्तुति हेतु बधाई. .
आपकी यह टिप्पणी मेरे लिये बहुत महत्व रखती है। हौसलाअफज़ाई के लिये बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत ही सुन्दर और प्यारा नवगीत.गीत की हर पंक्ति और पंक्तियों में छिपा हर भाव लाजवाब.बधाई रविशंकर जी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नन्दन जी
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