22 दिसंबर 2012

१२. नये वरस जी

शुभ–शुभ से संदेशे लाना
नये वरस जी.

कुम्हलाये खेतों में अँखुये
बड़ी विकट है धुंध
पाँव सिकोड़े पड़ी धूप भी
तेज सूर्य का कुंद

तेज हवाओं से ठिठुरे सहमे मौसम को
नर्म धूप का बिस्तर लाना
नये वरस जी

नाउम्मीदी के घर सपने
थके पथिक को पींगें
मरुथल की कोखों को अंकुर
चिंता के मन नीदें

सूख रही अभिलाषाओं के बरगद
पर आशाओं की शाख उगाना
नये वरस जी

संवादों की नदी पर बने
मतभेदों के बाँध
सदभावों की झील जम गई
बर्फ हुये अहसास

ठंडे होते संबंधों की अकड़न को
अपनेपन की आँच दिखाना
नये वरस जी

खलिहानों की साढ़ेसाती
ओसारे की ढैया
अबके मेहनत के घर से
टल जाये शनीचर भैया

अपने हाथों हर द्वारे शुभ–शगुन के लिये
हल्दी की छापें रच आना
नये वरस जी

–कृष्ण नन्दन मौर्य

4 टिप्‍पणियां:

  1. मौर्य जी, आपका यह गीत अच्छा लगा - नवगीत का यही समकालीन स्वर है, यही कहन-भंगिमा है। नये बरस से इस सहज बतकही के लिए मेरा हार्दिक साधुवाद!

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  2. नए बरस से सहज मनुहार करता हुआ बहुत सुंदर नवगीत। कृष्ण नन्दन जी को हार्दिक बधाई ।

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  3. कृष्णनन्दन जी को इस सुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  4. कृष्ण नंदन जी को इस शानदार नवगीत हेतु बहुत बहुत बधाई

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