फिर समय का देखिये, नटखट परिंदा,
अंकों के इक खेल से
बहला रहा है
पल, दिवस और माह वाला इक शिशु,
साल बन आने को अब
अकुला रहा है
वृक्ष के कुछ पात पीले,
पक रहे हैं,
झर रहे हैं
और नव पल्लव शिशु
दृग खोलने से
डर रहे हैं
कल इन्ही शाखों पे
कलियाँ खिलेंगी,
फूल शायद इसलिए कुछ हौले से
कुम्हला रहा है
वक्त की धारा कभी क्या
थम सकी है?
कोई नदिया कब मुहाने
पर रुकी है?
माना छिलता है नदी का तन
मगर, बहना तो है
है समय मुश्किल मगर संग
आस का गहना तो है
घाव सुविधाओं के दामों ने दिए जो,
वक्त बूढ़े नीम सा
सहला रहा है
-- सुवर्णा
अंकों के इक खेल से
बहला रहा है
पल, दिवस और माह वाला इक शिशु,
साल बन आने को अब
अकुला रहा है
वृक्ष के कुछ पात पीले,
पक रहे हैं,
झर रहे हैं
और नव पल्लव शिशु
दृग खोलने से
डर रहे हैं
कल इन्ही शाखों पे
कलियाँ खिलेंगी,
फूल शायद इसलिए कुछ हौले से
कुम्हला रहा है
वक्त की धारा कभी क्या
थम सकी है?
कोई नदिया कब मुहाने
पर रुकी है?
माना छिलता है नदी का तन
मगर, बहना तो है
है समय मुश्किल मगर संग
आस का गहना तो है
घाव सुविधाओं के दामों ने दिए जो,
वक्त बूढ़े नीम सा
सहला रहा है
-- सुवर्णा
" है समय मुश्किल मगर संग / आस का गहना तो है / घाव सुविधाओं के दामों ने दिए जो / वक़्त बूढ़े नीम सा / सहला रहा है !" आने वाले समय के प्रति आशान्वित करता सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंसुश्री सुवर्णा की यह रचना एकदम नई अछूती अभिव्यंजना और बिम्ब-संयोजना की दृष्टि से, निश्चित ही, बहुत अच्छी है। नवगीत की आज की आम कहन-भंगिमा से अलग होते हुए भी यह एक श्रेष्ठ गीत है। मेरा हार्दिक साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अश्विनी जी और कुमार रवींद्र जी. आपकी टिप्पणियाँ बहुत मनोबल बढाती हैं. बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंकल इन्ही शाखों पे
जवाब देंहटाएंकलियाँ खिलेंगी,
फूल शायद इसलिए कुछ हौले से
कुम्हला रहा है
आने वाले समय के प्रति आशान्वित करता सुन्दर गीत !
वक्त बूढ़े नीम सा सहला रहा है ।
जवाब देंहटाएंअनुभव और अपेक्षाओँ के सुन्दर ताने बाने मेँ बुना नवगीत । सुवर्णा जी को इस सुन्दर नवगीत के लिए बधाई ।
वक्त बूढ़े नीम सा सहला रहा है ।
जवाब देंहटाएंअनुभव और अपेक्षाओँ के सुन्दर ताने बाने मेँ बुना नवगीत । सुवर्णा जी को इस सुन्दर नवगीत के लिए बधाई ।
वक्त बूढ़े नीम सा सहला रहा है ।
जवाब देंहटाएंअनुभव और अपेक्षाओँ के सुन्दर ताने बाने मेँ बुना नवगीत । सुवर्णा जी को इस सुन्दर नवगीत के लिए बधाई ।
अच्छा गीत है सुवर्णा जी का, उन्हें बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंSimply beautiful!
जवाब देंहटाएंमेरे अपने सभी सुधि पाठक ,सुधि श्रोता और नवोदित, वरिष्ठ,तथा मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों को समर्पित आज का यह नया गीत विद्रूप यथार्थ की धरातल पर सामाजिक व्यवस्था और प्रबंधन की चरमराती लचर तानाशाही के कुरूप चहरे की मुक्म्मल बदलाव की जरूत महसूस करता हुआ नवगीत !
जवाब देंहटाएंसाहित्यिक संध्या की सुन्दरतम बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकरण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्पर है!.....
पता क्या
पूंछेंगी
नाविक
से नदियाँ
बीत गईं शदियाँ
बाढ़ों में धसके किनारे !
घाटों के
हरे भरे
आकाशी कहुये
कगारों के महुये
गुलर की
छईयों के गायब नज़ारे !
झुक झुक कर
छूतीं
जलधारा
कूम्हीं की डरैयाँ,
चौकड़ियाँ
भरती
ज्यों बछियाँ
बाँधे गिरैयाँ,
उबलती
उफनाती
अदहन
सी लहरें
आँखों न ठहरें
आवेगी धारा भँवरों के मारे !
पता क्या
पूंछेंगी
नाविक
से नदियाँ
बीत गईं शदियाँ
बाढ़ों में धसके किनारे !
घाटों के
हरे भरे
आकाशी कहुये
कगारों के महुये
गूलर की
छईयों के गायब नज़ारे !
अड़ते
अचानक
प्रवाहों के आगे
पतझरिया घोड़े,
जाने
पहचाने न
पानी की ताकत
बालू हैं रोड़े ,
गीत के
पखेरू
ओंठों में उतरे
कंठों में गहरे
डुबकियाँ
लगाये लय के सहारे !
पता क्या
पूंछेंगी
नाविक
से नदियाँ
बीत गईं शदियाँ
बाढ़ों में धसके किनारे !
घाटों के
हरे भरे
आकाशी कहुये
कगारों के महुये
गुलर की
छईयों के गायब नज़ारे !
कगारों से
जब तब
दहारों में
कूदें गुलरियाँ,
पानी में
रहकर
धुलती नहीं हैं
रानी मछरियाँ,
दल दल में
औंधी
काठ की कठौती
ठाँठों पटौती
डूबे हैं
जब तब गहरे शिंकारे !
पता क्या
पूंछेंगी
नाविक
से नदियाँ
बीत गईं शदियाँ
बाढ़ों में धसके किनारे !
घाटों के
हरे भरे
आकाशी कहुये
कगारों के महुये
गुलर की
छईयों के गायब नज़ारे !
भोलानाथ
डॉराधा कृष्णन स्कूल के बगल में
अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर
जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत
संपर्क – 8989139763