मन को
फिर महका रहे हैं
याद के पाहुन
कल यहीं एक नीड़ पर था
पंछियो का चहचहाना
बौर वाला
आम पाता
मुस्कुराने का बहाना
आज
ब्रज भी भूल बैठा
बंसरी की धुन
ढोल ताशे चुप हुए अब
फाग राहें नापते हैं
रंग नकली
खूब बिकते
और टेसू ताकते हैं
हाथ
बाँधे तक रहा है
अनमना फागुन...
-सुवर्णा दीक्षित (छिंदवाड़ा)
मन को
जवाब देंहटाएंफिर महका रहे हैं
याद के पाहुन
कल यहीं एक नीड़ पर था
पंछियो का चहचहाना
बौर वाला
आम पाता
मुस्कुराने का बहाना...बहुत सुन्दर नवगीत स्वर्णा जी
बहुत धन्यवाद सीमा जी , आभार
हटाएंकल यहीँ एक नीड़ पर था
जवाब देंहटाएंपंछियोँ का चहचहाना
बौर वाला
आम पाता
मुस्कुराने का बहाना
बहुत सुन्दर भाव, मन को छूने वाला नवगीत। बधाई सुवर्णा जी।
जी, आभार आपका सुरेन्द्रपाल जी
हटाएंसुचना ****सूचना **** सुचना
जवाब देंहटाएंसभी लेखक-लेखिकाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सुचना सदबुद्धी यज्ञ
(माफ़ी चाहता हूँ समय की किल्लत की वजह से आपकी पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं दे सकता।)
सुंदर नवगीत के लिए सुवर्णा जी को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद कल्पना जी, सब आप लोगों के साथ के कारण हो पाता है, स्नेह बनाए रखियेगा. आभार
हटाएंस्मृतियाँ महक उठी हैं कुछ जाने-पहचाने दृश्य झलकते ही, आम्रबौर के संग चिड़ियों की चहक चुपके-से उतर आती है मन में, गूंजने को होती ही है कोई धुन...कि बदला हुआ परिवेश चुभने वाली खामोशी और रूखेपन को समेट लाता है और धुंधला देता है रंगों को...अनमना फागुन असहाय ताकता-सा रह जाता है...
जवाब देंहटाएंफाग राहें नापते हैं
रंग नकली
खूब बिकते
और टेसू ताकते हैं........रिश्तों-की नैसर्गिक सहजता को बनावटी हुड़दंग ने बेरंग कर दिया है, यही चिंता व्यक्त है यहाँ ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
khoob suvarnaa jee...........
जवाब देंहटाएंdhanyavaad ashwini ji evam padmnabh ji, protsahan hetu abhar
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत है सुवर्णा जी का, बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत आभार धर्मेन्द्र जी,
हटाएंबहुत मनभावन नवगीत !
जवाब देंहटाएंडॉ सरस्वती माथुर
आभार सरस्वती माथुर जी,
हटाएंढोल ताशे चुप हुए अब
जवाब देंहटाएंफाग राहें नापते हैं
रंग नकली
खूब बिकते
और टेसू ताकते हैं
हाथ
बाँधे तक रहा है
अनमना फागुन...
बहुत ही सार्थक रचना. बधाई सुवर्णा जी.
बहुत धन्यवाद प्रोत्साहन हेतु अनिल जी
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