फागुन की
झोली से निकले कैसे कैसे रंग
लो भइया!
फिर शुरू हो गयी होली की हुड़दंग
यूँ बौराया
आम कि सारा मौसम बौराया
कोयल ऐसे कूकी
सोया दर्द उभर आया
हवा चली मदभरी कि जैसे
पड़ी कुयें में भंग
जीजा–साली
देवर–भौजी जैसे रिश्ते हैं
हँसी–ठिठोली और
नेह की बाकी किश्तें हैं
बिसर गया है बाबा को भी
कुछ दिन से सत्संग
नशा चढ़ा है
ऐसा, किसको रस्ता सूझेगा
किस पर किसका
रंग चढ़ा है फागुन बूझेगा
कई नेह के अंकुर फूटे
लेकर नई उमंग
– रविशंकर "रवि"
राजापुर खरहर, रानीगंज
प्रतापगढ़, उ. प्र.
झोली से निकले कैसे कैसे रंग
लो भइया!
फिर शुरू हो गयी होली की हुड़दंग
यूँ बौराया
आम कि सारा मौसम बौराया
कोयल ऐसे कूकी
सोया दर्द उभर आया
हवा चली मदभरी कि जैसे
पड़ी कुयें में भंग
जीजा–साली
देवर–भौजी जैसे रिश्ते हैं
हँसी–ठिठोली और
नेह की बाकी किश्तें हैं
बिसर गया है बाबा को भी
कुछ दिन से सत्संग
नशा चढ़ा है
ऐसा, किसको रस्ता सूझेगा
किस पर किसका
रंग चढ़ा है फागुन बूझेगा
कई नेह के अंकुर फूटे
लेकर नई उमंग
– रविशंकर "रवि"
राजापुर खरहर, रानीगंज
प्रतापगढ़, उ. प्र.
बहुत सुन्दर नवगीत है रवि जी .......
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद सुवर्णा जी
हटाएंबहुत जीवंत गीत, होली को पूरी उमंग में जीता हुआ......
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद परमेश्वर जी
हटाएंजोरदार मुखड़े के साथ सधे हुएअंदाज़ में सभी अंतरे बहुत सुंदर लगे। हार्दिक बधाई...
जवाब देंहटाएंढेर सारे धन्यवाद कल्पना जी
हटाएंअच्छा नवगीत है रविशंकर जी, बधाई स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंअनेकशः धन्यवाद धर्मेन्द्र जी
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