तितर-बितर रंगों में
खोज लिए फागुन
ज़िद्दी हैं थोड़े
दीवाने हैं हम
हँस-गा लेते आँखें
हों चाहे नम
चुन लेते रस्ते-की
ठोकर से रुनझुन
किसी धूप किस्से
किसी छाँव सपने
हँसते हैं पनघट
जहाँ ठांव अपने
रातों में खिलखिलाएँ
सुबह के शगुन
बतिया ले कोई तो
सरस जाए तन
और गले से लग जाए
बस जाए मन
धडकनों में गूँज उठती
मधुवंती धुन
-अश्विनी कुमार विष्णु
अकोला (महाराष्ट्र)
खोज लिए फागुन
ज़िद्दी हैं थोड़े
दीवाने हैं हम
हँस-गा लेते आँखें
हों चाहे नम
चुन लेते रस्ते-की
ठोकर से रुनझुन
किसी धूप किस्से
किसी छाँव सपने
हँसते हैं पनघट
जहाँ ठांव अपने
रातों में खिलखिलाएँ
सुबह के शगुन
बतिया ले कोई तो
सरस जाए तन
और गले से लग जाए
बस जाए मन
धडकनों में गूँज उठती
मधुवंती धुन
-अश्विनी कुमार विष्णु
अकोला (महाराष्ट्र)
इस सुन्दर नवगीत के लिए अश्वनी कुमार विष्णु जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसच्चे अर्थों में आपकी छाप है इस गीत में. माधुर्य, जीवन के सच्चे अर्थ समेटे यह एक अनूठा नवगीत है जो होली को उसके पूरे उल्लास से जीता है चाहे फिर खुशियाँ हो या दुःख. बहुत सुन्दर प्रस्तुति आ अश्विनी जी. आपको बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सरस प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंज़िद्दी हैं थोड़े
जवाब देंहटाएंदीवाने हैं हम
हँस-गा लेते आँखें
हों चाहे नम
चुन लेते रस्ते-की
ठोकर से रुनझुन
अति सुंदर नवगीत के लिए अश्विनी जी को हार्दिक बधाई॥
'चुन लेते रस्ते-की
जवाब देंहटाएंठोकर से रुनझुन'
यह सात्त्विक आग्रह आज के हमारे असंगत समय में बेहद ज़रूरी है। इस सार्थक फागुन- गीत के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें, विष्णु जी!
सुंदर नवगीत के लिए अश्विनी जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंतितर-बितर रंगों में
जवाब देंहटाएंखोज लिए फागुन
वास्तव में आज हमें फागुन को खोजना पड़ता है. अतिसुन्दर नवगीत के लिये हार्दिक बधाई विष्णु जी.