हर कडुवाहट पर
जीवन की
आज अबीर लगा दे
फगुआ – ढोल बजा दे
तेज हुआ रवि
भागी ठिठुरन
शीत – उष्ण – सी
ऋतु की चितवन
अकड़ गयी जो
टहनी मन की
उसको तनिक लचा दे
खोलें गाँठ
लगी जो छल की
रिहा करें हम
छवि निश्छल की
जलन मची अनबन की
उस पर
शीतल बैन लगा दे
साल नया है
पहला दिन है
मधुवन – गंध
अभी कमसिन है
सुनो, पपीहे
ऐसे में तू
कोयल के सुर गा दे
- अवनीश सिंह चौहान
(म्रारादाबाद)
जीवन की
आज अबीर लगा दे
फगुआ – ढोल बजा दे
तेज हुआ रवि
भागी ठिठुरन
शीत – उष्ण – सी
ऋतु की चितवन
अकड़ गयी जो
टहनी मन की
उसको तनिक लचा दे
खोलें गाँठ
लगी जो छल की
रिहा करें हम
छवि निश्छल की
जलन मची अनबन की
उस पर
शीतल बैन लगा दे
साल नया है
पहला दिन है
मधुवन – गंध
अभी कमसिन है
सुनो, पपीहे
ऐसे में तू
कोयल के सुर गा दे
- अवनीश सिंह चौहान
(म्रारादाबाद)
आ अवनीश जी का यह गीत होली की उमंग को तो जीता ही है पर बहुत व्यापक सन्देश भी देता है. यह गीत पहले पढ़ चूका हूँ ओर मुझे यह बहुत पसंद है. विशेषकर मन की टहनी वाला अंतरा. बधाई अवनीश जी को.
जवाब देंहटाएंअकड़ गयी जो
जवाब देंहटाएंटहनी मन की
उसको तनिक लचा दे
बहुत बड़ी बात कह दी. सुन्दर नवगीत के लिये हार्दिक बधाई अवनीश जी.
खोलें गांठ
जवाब देंहटाएंलगी जो छल की
रिहा करें
छवि निश्छल की...
बहुत सुन्दर नवगीत, बधाई अवनीश जी।
बहुत सुंदर
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