बात या
बिन बात के मुस्कान पहने
तिर रहे हैं फाग के दिन
हैं पलाशों के
घरों मेंरंग की छिटकारियाँ
गुलमोहर ने सुर्ख़ियों की
खोल दीं अलमारियाँ
आम के बौरों पे मोती से चमकते
गिर रहे हैंफाग के दिन
पूरबी झोंके
चले हैं घेर कर पगडंडियाँ
खोलते घूँघट सताएँ
कर रहे अठखेलियाँ
त्यौंरियों को देख हँसते खिलखिलाते
फिर रहे हैं फाग के दिन
गठरियाँ ले
याद की गुपचुप कहीं बैठे बिछोड़े
भंग की मस्ती चढ़ाए
है मिलन ने बाँध तोड़े
चटक-धूसर रंग के घेरों में खुद भी
घिर रहे हैं फाग के दिन
सीमा अग्रवाल
(कोरबा छत्तीसगढ़)
बिन बात के मुस्कान पहने
तिर रहे हैं फाग के दिन
हैं पलाशों के
घरों मेंरंग की छिटकारियाँ
गुलमोहर ने सुर्ख़ियों की
खोल दीं अलमारियाँ
आम के बौरों पे मोती से चमकते
गिर रहे हैंफाग के दिन
पूरबी झोंके
चले हैं घेर कर पगडंडियाँ
खोलते घूँघट सताएँ
कर रहे अठखेलियाँ
त्यौंरियों को देख हँसते खिलखिलाते
फिर रहे हैं फाग के दिन
गठरियाँ ले
याद की गुपचुप कहीं बैठे बिछोड़े
भंग की मस्ती चढ़ाए
है मिलन ने बाँध तोड़े
चटक-धूसर रंग के घेरों में खुद भी
घिर रहे हैं फाग के दिन
सीमा अग्रवाल
(कोरबा छत्तीसगढ़)
poorvi jhoke chale hai ...achcha geet hai badhai
जवाब देंहटाएंहैं पलाशों के
जवाब देंहटाएंघरों मेंरंग की छिटकारियाँ
गुलमोहर ने सुर्ख़ियों की
खोल दीं अलमारियाँ
आम के बौरों पे मोती से चमकते
गिर रहे हैंफाग के दिन
वाह क्या बात है. बहुत ही सुन्दर नवगीत. अनोखा प्रकृति चित्रण. हार्दिक बधाई सीमा जी.
बात या
जवाब देंहटाएंबिन बात के मुस्कान पहने
तिर रहे हैं फाग के दिन.....................
बहुत सुंदर गीत .....बधाई
बात या
जवाब देंहटाएंबिन बात के मुस्कान पहने
तिर रहे हैं फाग के दिन.....
बहुत सुंदर गीत ....बधाई
आपकी पोस्ट 21 - 03- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें ।
सुन्दर गीत सीमा जी , हैं पलाशों के
जवाब देंहटाएंघरों मेंरंग की छिटकारियाँ
गुलमोहर ने सुर्ख़ियों की
खोल दीं अलमारियाँ
आम के बौरों पे मोती से चमकते
गिर रहे हैंफाग के दिन ...........
सुन्दर पंक्तियाँ.
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंहै पलाशों के
जवाब देंहटाएंघरोँ मेँ रंग की छिटकारियाँ
गुलमोहर ने सुर्खियोँ की
खोल दी अलमारियां...
सुन्दर नवगीत के लिए बधाई सीमा अग्रवाल जी।