गर्मियों के दिन जले
ऊँघता
बूढ़ा कुआँ
नीम की छाया तले
देह मिट्टी से ढकी है
पाँव माटी में गड़े
शुद्ध शीतल स्वच्छ जल में
नीम के पत्ते पड़े
नीम फलता
हो जहाँ
वायरस कैसे पले
नीम को ये पाँच लोटा
जल चढ़ाता रोज ही
और देवी शीतला को
सर नवाता रोज ही
शुद्ध हों
तन मन जहाँ
गंदगी कैसे फले
शीतला खुद झूलती हैं
नीम पर हर गाँव में
बच्चियाँ रहतीं सुरक्षित
खेल ठंडी छाँव में
देव हों
रक्षक जहाँ
दैत्य की कैसे चले
-धर्मेन्द्र कुमार सिंह
बिलासपुर (हिमांचल प्रदेश)
ऊँघता
बूढ़ा कुआँ
नीम की छाया तले
देह मिट्टी से ढकी है
पाँव माटी में गड़े
शुद्ध शीतल स्वच्छ जल में
नीम के पत्ते पड़े
नीम फलता
हो जहाँ
वायरस कैसे पले
नीम को ये पाँच लोटा
जल चढ़ाता रोज ही
और देवी शीतला को
सर नवाता रोज ही
शुद्ध हों
तन मन जहाँ
गंदगी कैसे फले
शीतला खुद झूलती हैं
नीम पर हर गाँव में
बच्चियाँ रहतीं सुरक्षित
खेल ठंडी छाँव में
देव हों
रक्षक जहाँ
दैत्य की कैसे चले
-धर्मेन्द्र कुमार सिंह
बिलासपुर (हिमांचल प्रदेश)
शीतला खुद झूलती हैं
जवाब देंहटाएंनीम पर हर गाँव में
बच्चियाँ रहतीं सुरक्षित
खेल ठंडी छाँव में
देव हों
रक्षक जहाँ
दैत्य की कैसे चले
बहुत सुंदर नवगीत। बधाई हो।
शीतला खुद झूलती हैं
जवाब देंहटाएंनीम पर हर गाँव में
बच्चियाँ रहतीं सुरक्षित
खेल ठंडी छाँव में
देव हों
रक्षक जहाँ
दैत्य की कैसे चले।
नीम के प्रति हमारी आस्था और परम्पराओं को याद दिलाता सुन्दर नवगीत।