सड़क किनारे
बैठ नीम की छाया में
कच्ची कैरी
बेच रही है रामकली
घनी धूप है और
तप रही दोपहरी
आग पेट की
सुलग रही गहरी-गहरी
आते-जाते लोग देखकर
नीम तले
रस की ढेरी
बेच रही है रामकली
नए साल में
गये साल की यादों को
जोड़ रही टूटे-बिखरे
संवादों को
घनी घाम में, नीम छाँव में
चेहरों को
ख़ुशी घनेरी
बेच रही है रामकली
-जगदीश पंकज
(गाजियाबाद)
बैठ नीम की छाया में
कच्ची कैरी
बेच रही है रामकली
घनी धूप है और
तप रही दोपहरी
आग पेट की
सुलग रही गहरी-गहरी
आते-जाते लोग देखकर
नीम तले
रस की ढेरी
बेच रही है रामकली
नए साल में
गये साल की यादों को
जोड़ रही टूटे-बिखरे
संवादों को
घनी घाम में, नीम छाँव में
चेहरों को
ख़ुशी घनेरी
बेच रही है रामकली
-जगदीश पंकज
(गाजियाबाद)
वाह लाजवाब और सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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नीम से हमारे कार्यव्यापार के जुडाव को प्रदर्शित करता सुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंअच्छा नवगीत, बधाई जगदीश जी को
जवाब देंहटाएं