21 मई 2013
२. तत्पर खड़ा है नीम
रोक कर चुभती हवा
वैसाख की,
प्राणियों की प्राण रक्षा
हित खड़ा है नीम।
जानता है वो,
समय उसके लिए यह खास है।
एक उसकी छाँव की
हर जीव जन को आस है।
ढाल बन किरणें निगलकर सूर्य की,
दोपहर में प्रात सा
सुखकर खड़ा है नीम।
पात बिन जब,
ठूँठ दिखते, पेड़ कई छोटे बड़े।
श्वेत पुष्पों हरित पत्तों
से लुभाता पेड़ ये।
शुद्धतम शीतल हवाएँ रोककर,
ताप के आघात से
हँसकर लड़ा है नीम।
हो निरोगी तन,
सुबह कुछ पान खाएँ नीम के।
और है हितकर,
अगर हो स्नान उबले नीम से।
स्वाद कड़वा, पर असर मीठा लिए,
बाँटने हर अंग को,
तत्पर खड़ा है नीम।
कल्पना रामानी
(मुंबई)
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कार्यशाला : २७
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बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंश्वेत पुष्पों हरित पत्तों
से लुभाता पेड़ ये।
शुद्धतम शीतल हवाएँ रोककर,
ताप के आघात से
हँसकर लड़ा है नीम।
नीम की गुणवत्ता का
जवाब देंहटाएंसुंदरता से बखान करता सुंदर नवगीत ..
बधाई कल्पना जी को ..
आपकी प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
प्रकृति से मानव जीवन के तादात्म्य ko उजागर करने का जो गुण आपके नवगीतों में होता है, वह बड़ा ही विरल है आदरणीया रामानी जी. एक खूबसूरत नवगीत आपका. बधाई.
जवाब देंहटाएंसुंदर नवगीत के लिए कल्पना जी को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
सही में नीम के गुण अनगिनत हैं
जवाब देंहटाएंबढ़िया सार्थक रचना
साभार!
बहुत सुन्दर और सार्थक नवगीत। बधाई कल्पना रामानी जी।
जवाब देंहटाएंYour corelation and grip to subject is amazing...i like the way you treat with....congrats maa
जवाब देंहटाएंस्वाद कड़वा, पर असर मीठा लिए,
जवाब देंहटाएंबाँटने हर अंग को,
तत्पर खड़ा है नीम।
...सुन्दर और सार्थक रचना