28 मई 2013

६. साथ नीम का

पत्ता पत्ता रोयें जैसा
उँगली जैसी डाली
हरे रंग के दामन से लो चली
हवा मतवाली

विषकन्या नाचे धमनी में
निबौलियाँ शाखों में
अद्भुत छटा न देखी जाय
सुन्दरतम लाखों में
अजब गजब देती खुशहाली
छाया से रिस रिस कर बहती पूनम
रात उजाली

नीचे शिला ग्रामदेव की
झुके सभी का माथा
सुने पवन जो माटी बोले
एक विरानी गाथा
गाए अदभुत करे जुगाली
चरमर बिखरे पत्तों में, माया की
छाया काली

झाँक दिलों में देखे सबके
सपने ऊँचे ऊँचे
स्नेह उँडेला झगड़े टाले
इस छाया के नीचे
बज गई मौसम की करताली
सरबत कड़वा, स्नेह दूध सा, करती
है रखवाली।

-हरिहर झा
(आस्ट्रेलिया)

5 टिप्‍पणियां:

  1. झाँक दिलों में देखे सबके
    सपने ऊँचे ऊँचे
    स्नेह उँडेला झगड़े टाले
    इस छाया के नीचे
    बज गई मौसम की करताली
    सरबत कड़वा, स्नेह दूध सा, करती
    है रखवाली।

    खूबसूरत नवगीत हरिहर जी।

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  2. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के सभी के अपने अपने रंग रूमानियत के संग ......! चर्चा मंच अंक-1259 पर भी होगी!
    सादर...!

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  3. बहुत सुंदर नवगीत है हरिहर जी का। बहुत बहुत बधाई

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  4. विषकन्या नाचे धमनी में
    निबौलियाँ शाखों में
    अद्भुत छटा न देखी जाय
    सुन्दरतम लाखों में
    बहुत सुंदर नवगीत हरिहर जी,
    लेकिन औषधि की तुलना विष से? मेरे विचार से इसके स्थान पर कड़वाहट जैसा कोई शब्द होता तो उचित रहता।

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  5. बहुत खूबसूरत नवगीत।
    शुभकामनाएं।

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