जब जब
ताप बढ़ेगा चम्पा
पेड़ तुम्हारे छाँव करेंगे
रूप, सुगंध, गुणों की मलिका
तुम महकोगी
हम महकेंगे
नागफनी ने किया आक्रमण
जीवन के उद्यानों पर
हर आँगन में बसा लिए हैं
अपने साथी अपने घर
विचलित है
अंतर जन-जन का,
रंग तुम्हारे भाव भरेंगे।
तन कंचन, मन कोमल कलिका,
तुम किलकोगी,
हम किलकेंगे।
जहाँ नहीं शुभ कदम तुम्हारे,
हम बोएँगे बीज वहाँ।
अमलतास, कचनार, बाँस भी,
संग तुम्हारे होंगे हाँ।
जब रोगों
का हुआ आक्रमण,
प्राण-सुधा तुमसे हम लेंगे।
कभी न होना, धूमिल चम्पा,
तुम हर्षोगी
हम हर्षेंगे।
-कल्पना रामानी
मुंबई
बहुत ही मनभावन नवगीत ----चंपा के नाम,तुम किल्कोगी हम किल्केंगे ,वाह अद्भुत शब्द -विन्यास और कल्पनातीत सृजन !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुन्दर गीत .....सुन्दर प्रवाह में शब्दों का सुन्दर संयोजन ....हार्दिक बधाई आपको कल्पना दी
जवाब देंहटाएंकितनी गहराई है ......कल्पनाजी की रचना में ....जितनी चंपा में खुशबू.....
जवाब देंहटाएंआबाद रहे चमन -महकती रहे चम्पा !
जवाब देंहटाएंप्रकृति प्रेम, पर्यावरणीय सरोकार आपके नवगीतों में सदैव ही उभर कर आते हैं। लय का तो जवाब नहीं। अच्छे नवगीत के लिए बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंबहुत मनभावन गीत ...
जवाब देंहटाएंजहां नहीं शुभ कदम तुम्हारे,
जवाब देंहटाएंहम बोएँगे बीज वहां
सुन्दर भावनाओं को महसूस करवाता नवगीत।
हार्दिक बधाई।
बहुत सुंदर नवगीत रचा है कल्पना रामानी जी ने। उन्हें बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंजब जब
जवाब देंहटाएंताप बढ़ेगा चम्पा
पेड़ तुम्हारे छाँव करेंगे..... सुंदर नवगीत
बहुत ही सुन्दर एवं मनभावन गीत। स्वयं शून्य
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