श्वेत पीत रक्ताभ लिए
खिले पुष्प फिर चंपा के
हरित चुनर पर
जड़े हुए नभ से उतरे तारागण
या कि सागर उर्मियों पर बिखरे मूँगे-मोती कण
भर दे आँचल खुशियाँ से
अपनी धरणी अम्बा के
थाल सजें
पूजा अर्चन देवों को शुभ माल्यार्पण
बालाओं के आभूषण से मुसकाए यह प्रांगण
कवियों के हों प्रेरित मन
घर सौन्दर्य मधुरता के
सिखलाये
जीवन दर्शन दूजों के हित जीने का
रूप रंग खुशियाँ अर्पण इत्र सुवासित मन हरता
जग हित निज प्राण समर्पण
उदाहरण अनुकम्पा के
-ज्योतिर्मयी पंत
खिले पुष्प फिर चंपा के
हरित चुनर पर
जड़े हुए नभ से उतरे तारागण
या कि सागर उर्मियों पर बिखरे मूँगे-मोती कण
भर दे आँचल खुशियाँ से
अपनी धरणी अम्बा के
थाल सजें
पूजा अर्चन देवों को शुभ माल्यार्पण
बालाओं के आभूषण से मुसकाए यह प्रांगण
कवियों के हों प्रेरित मन
घर सौन्दर्य मधुरता के
सिखलाये
जीवन दर्शन दूजों के हित जीने का
रूप रंग खुशियाँ अर्पण इत्र सुवासित मन हरता
जग हित निज प्राण समर्पण
उदाहरण अनुकम्पा के
-ज्योतिर्मयी पंत
सुन्दर नवगीत के लिए ज्योतिर्मयी पंत जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर नवगीत हेतु ज्योतिर्मयी जी को बधाई
जवाब देंहटाएंहरित चुनर पर
जवाब देंहटाएंजड़े हुए नभ से उतरे तारागण...
भर दे आँचल खुशियाँ से
अपनी धरणी अम्बा के ..... सुंदर