25 जुलाई 2013

५. फूल चंपा के सजाकर

चाँद का टीका लगाकर कौन आया है
फूल चम्पा के सजाकर
कौन आया है

एक पहचानी हुई खु़शबू हवाओं में
दूर तक कोई नहीं लेकिन निगाहों में
उम्र भर एक स्वप्न से रिश्ता निभाया है
भोर की मेंहदी रचाकर
कौन आया है

घंटिया सी बज रही हैं आज फिर तन में
आरती होने लगी भीतर कहीं मन में
दीप की लौ सा नजर में झिलमिलाया है
रात के घुँघरू सजा कर
कौन आया है

सूर्य की पहली किरन सी मुस्कराहट है
मन को विचलित कर रही ये किसकी आहट है
पूर्व के आलोक सा जो मन पे छाया है
घूप का चंदन लगा कर
कौन आया है

सच कहूँ तो आज काबू में नहीं है मन
दूर तक अहसास पर छाया गुलाबीपन
एक मादक स्वप्न आँखों में समाया है
ये निगाहों को झुका कर
कौन आया है

रात का काजल लगा कर कौन आया है
फूल चम्पा के सजाकर
कौन आया है.

-अशोक रावत
नायडा

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर लेख

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  2. घंटिया सी बज रही हैं आज फिर तन में
    आरती होने लगी भीतर कहीं मन में
    दीप की लौ सा नजर में झिलमिलाया है
    रात के घुँघरू सजा कर
    कौन आया है
    बहुत बहुत सुंदर और प्यारा नवगीत...आदरणीय अशोक जी को हार्दिक बधाई

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. बहुत सुन्दर, मन को भा गयीं यह पंक्तियाँ
    बहुत ही सरल और सुन्दर शब्दों में रची गयी …

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  5. बहुत सुन्दर ..मधुर गीत ...

    ज्योत्स्ना शर्मा

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  6. फूल चम्पा के सजाकर
    कौन आया...
    सुन्दर नवगीत के लिए बधाई।

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  7. कृष्ण नन्दन मौर्य13 अगस्त 2013 को 10:15 am बजे

    घंटिया सी बज रही हैं आज फिर तन में
    आरती होने लगी भीतर कहीं मन में
    दीप की लौ सा नजर में झिलमिलाया है
    रात के घुँघरू सजा कर
    कौन आया है.....वाह ... क्या बात

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