चाँद का टीका लगाकर कौन आया है
फूल चम्पा के सजाकर
कौन आया है
एक पहचानी हुई खु़शबू हवाओं में
दूर तक कोई नहीं लेकिन निगाहों में
उम्र भर एक स्वप्न से रिश्ता निभाया है
भोर की मेंहदी रचाकर
कौन आया है
घंटिया सी बज रही हैं आज फिर तन में
आरती होने लगी भीतर कहीं मन में
दीप की लौ सा नजर में झिलमिलाया है
रात के घुँघरू सजा कर
कौन आया है
सूर्य की पहली किरन सी मुस्कराहट है
मन को विचलित कर रही ये किसकी आहट है
पूर्व के आलोक सा जो मन पे छाया है
घूप का चंदन लगा कर
कौन आया है
सच कहूँ तो आज काबू में नहीं है मन
दूर तक अहसास पर छाया गुलाबीपन
एक मादक स्वप्न आँखों में समाया है
ये निगाहों को झुका कर
कौन आया है
रात का काजल लगा कर कौन आया है
फूल चम्पा के सजाकर
कौन आया है.
-अशोक रावत
नायडा
बहुत सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंyour welcome to
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घंटिया सी बज रही हैं आज फिर तन में
जवाब देंहटाएंआरती होने लगी भीतर कहीं मन में
दीप की लौ सा नजर में झिलमिलाया है
रात के घुँघरू सजा कर
कौन आया है
बहुत बहुत सुंदर और प्यारा नवगीत...आदरणीय अशोक जी को हार्दिक बधाई
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, मन को भा गयीं यह पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत ही सरल और सुन्दर शब्दों में रची गयी …
बहुत सुन्दर ..मधुर गीत ...
जवाब देंहटाएंज्योत्स्ना शर्मा
फूल चम्पा के सजाकर
जवाब देंहटाएंकौन आया...
सुन्दर नवगीत के लिए बधाई।
अच्छा नवगीत है
जवाब देंहटाएंप्रेमगीत सा नवगीत।
जवाब देंहटाएंघंटिया सी बज रही हैं आज फिर तन में
जवाब देंहटाएंआरती होने लगी भीतर कहीं मन में
दीप की लौ सा नजर में झिलमिलाया है
रात के घुँघरू सजा कर
कौन आया है.....वाह ... क्या बात