अधखिली कलियों का देख रूप आली
कौन सोच डूब गई चम्पे
की डाली
खिलने-
महकने में थोड़ी-सी देर है
बीते न रात, आह ! सुबह अबेर है
अलस नींद था सोया बगिया का माली
और सोच डूब गई चम्पे
की डाली ।
रूप दिया,
रंग दिया कितना उजास
पवन सखी फैलाए कन-कन सुवास
मधु से, मकरंद से क्यूँ रीती प्याली
यही सोच डूब गई चम्पे
की डाली
विधना ने
लिख दिया अपना विधान
संग ले उमंग जीत, जीने की ठान
मेरे साथ गा तू भी होकर मतवाली
अब कुछ ना सोच सखी चम्पे
की डाली
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
कौन सोच डूब गई चम्पे
की डाली
खिलने-
महकने में थोड़ी-सी देर है
बीते न रात, आह ! सुबह अबेर है
अलस नींद था सोया बगिया का माली
और सोच डूब गई चम्पे
की डाली ।
रूप दिया,
रंग दिया कितना उजास
पवन सखी फैलाए कन-कन सुवास
मधु से, मकरंद से क्यूँ रीती प्याली
यही सोच डूब गई चम्पे
की डाली
विधना ने
लिख दिया अपना विधान
संग ले उमंग जीत, जीने की ठान
मेरे साथ गा तू भी होकर मतवाली
अब कुछ ना सोच सखी चम्पे
की डाली
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
मेरे साथ गा तू भी होकर मतवाली
जवाब देंहटाएंअब कुछ न सोच सखी
चम्पे की डाली।
बहुत खूबसूरत नवगीत।
रूप दिया,
जवाब देंहटाएंरंग दिया कितना उजास
पवन सखी फैलाए कन-कन सुवास
मधु से, मकरंद से क्यूँ रीती प्याली
यही सोच डूब गई चम्पे
की डाली
सुंदर कल्पना। सुंदर गीत। बधाई।
सुंदर नवगीत हेतु ज्योत्सना जी को बधाई
जवाब देंहटाएंनवगीतकार का चम्पा से तादात्म्य और सम्वाद, सुन्दर नवगीत ज्योत्स्ना जी।
जवाब देंहटाएंसंग ले उमंग जीत, जीने की ठान
जवाब देंहटाएंमेरे साथ गा तू भी होकर मतवाली
अब कुछ ना सोच सखी चम्पे
की डाली ...............खूबसूरत नवगीत