चम्पा से
सट-सट के महका सा भीत
सीले से आँगन में बिखराया पीत
खेती पथारी
से सौ दुनियादारी से
बाबा के डेंगु तक बा की बीमारी से
माँ को भी बिसराया बचपन
का गीत
सावन यों
फूटा है, देवा ज्यों रूठा है
पानी में तिरता सा चम्पा का बूटा है
गाँठों का मारा है राहत
का फीत
निर्धन की
थाली पे गेंहू की बाली पे
फैली हथेली सम चम्पा सवाली पे
अगहन मेहरबाँ ना राजी
है सीत
-शार्दुला झा नोगजा
सिंगापुर
सट-सट के महका सा भीत
सीले से आँगन में बिखराया पीत
खेती पथारी
से सौ दुनियादारी से
बाबा के डेंगु तक बा की बीमारी से
माँ को भी बिसराया बचपन
का गीत
सावन यों
फूटा है, देवा ज्यों रूठा है
पानी में तिरता सा चम्पा का बूटा है
गाँठों का मारा है राहत
का फीत
निर्धन की
थाली पे गेंहू की बाली पे
फैली हथेली सम चम्पा सवाली पे
अगहन मेहरबाँ ना राजी
है सीत
-शार्दुला झा नोगजा
सिंगापुर
बहुत सुंदर नवगीत है शार्दूला जी का, बधाई उन्हें
जवाब देंहटाएंपाठशाला में आये कुछ उत्कृष्ट नवगीतों में से एक है आपका नवगीत। विम्ब, लय, शिल्प सभी कुछ मुझे बहुत भाया।
जवाब देंहटाएंनिर्धन की
जवाब देंहटाएंथाली पे गेंहू की बाली पे
फैली हथेली सम चम्पा सवाली पे
अगहन मेहरबाँ ना राजी
है सीत ...... बहुत खूब